किसी भी प्रकार का प्रदूषण विभीषण का भाई होता है ।
पटाखों से ध्वनि और वायु-प्रदूषण दोनों होते हैं और अस्थमा, तथा एलर्जीजन्य अन्य वे सारी बीमारियाँ हो सकती हैं जो सिगरेट-बीड़ी, तमाखू, शराब आदि के सेवन से होती हैं ।
’बारूद’ चीनी आविष्कार है कृत्रिम भी होने से अप्राकृतिक रसायन तो है ही ।
लॉउड-स्पीकर और यहाँ तक कि ’बिजली’ भी अप्राकृतिक है, इसलिए कम-से-कम ’धर्म’ अर्थात् स्वाभाविक आचार-विचार से भिन्न है । यदि हम व्यवहार में उसका प्रयोग करते भी हैं तो भी मंदिरों में उसे प्रयोग करना या न करना विचारणीय प्रश्न तो है ही । काग़ज़ भी चीन का आविष्कार है और सिल्क / रेशम (चीनाँशुक > रेशम) भी, लेकिन रेशम सदा से भारत में पैदा होता रहा है, इसे ’हिंसा’ के साथ न जोड़ें । इसी प्रकार वेदों में वर्णित मधु भी मधु के छत्ते से अपने-आप टपकने से प्राप्त होनेवाला शहद है न कि मधुमखियों के पालन से उत्पन्न ।
इसमें जो भी कारण हों, काग़ज़ ’बाँस’ और तृण-आदि से बनता है और इसलिए भी खासकर ’धार्मिक-ग्रंथों’ को लिखने के लिए, इसका उपयोग अशुभ हो सकता है (बाँस, तृण, कुशा आदि का संबंध पितृ-लोक, देव-लोक आदि से होने से) ।
इस प्रकार बहुत सी वस्तुएँ जो हम उपयोग करते हैं न केवल स्थूल, बल्कि सूक्ष्म प्रदूषण का भी कारण है ।
भूमि से प्राप्त खनिज-तेल भी इसी प्रकार किसी हदतक स्वयं ही मृत जीवों का अवशेष है । भूमि से भौम का संबंध होने से ज्योतिषीय दृष्टि से इस पर विचार करने पर यह समझा जा सकता है कि यह वैसे भी निषिद्ध है । शनि और लोहे का संबंध तो सबको पता ही होगा ।
इस सबको ’अंधश्रद्धा’ कहने से पहले इस बारे में जागरूक होना चाहिए कि शुक्र / भृगु और शनि से प्रभावित इस्लामी देशों का वैभव ’आसुरी’ है न कि उद्यम से उत्पन्न किया गया है ।
शुक्र / भृगु का विष्णु से वैर भी वैसा ही जगज़ाहिर है । वामन-अवतार, भृगु द्वारा विष्णु की छाती पर पादाघात, सभी दर्शाते हैं कि अरब-देशीय ’धर्म’ और गतिविधियाँ किस प्रकार की हैं ।
वाल्मीकि रामायण में जाबाल्-ऋषि (जिब्राइल) द्वारा भगवान श्रीराम से विवाद किया जाना भी इस ओर संकेत करता है ।
तब श्रीराम द्वारा जाबाल को ’संबुद्ध’ कहकर संबोधित करना और उनकी कटुतम भर्त्सना करना क्या दर्शाता है?
यही कि यद्यपि भगवान् बुद्ध विष्णु का अवतार हैं लेकिन उनके अवतार लेने का प्रयोजन लोगों को सनातन-धर्म से दूर करने के लिए था ।
सत्य या असत्य है, जानना रोचक तो है ही ।
इस लेख की शुरुआत ’पटाख़े’ के बारे में लिखने के विचार से हुई थी, लेकिन कलम बहक गई!
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’खर-दूषण’ के बारे में फिर कभी!