I do not know how many souls I have
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फ़र्नांडो पेसोवा की पोर्चुगीज़ कविता
हिंदी अनुवाद
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मुझे नहीं पता, कितनी हैं मेरी अस्मिताएँ, ..
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मुझे नहीं पता, कितनी हैं मेरी अस्मिताएँ, ..
हर पल बदलता गया हूँ मैं,
अपने आपको हमेशा अजनबी महसूस करते हुए,
कभी नहीं देखा, या पाया अपने आपको मैंने,
इतना सब होते हुए भी, एक ही तो है अस्मिता मेरी,
जिनकी होती हैं अनेक अस्मिताएँ, उन्हें शांति नहीं मिलती,
वह, जो कि देखता है, वही होता है, जिसे कि वह देखता है,
वह, जो कि वह महसूस करता है,
-वह नहीं होता, जिसे कि वह महसूस करता है,
मैं जो हूँ और जिसे मैं कि देखता हूँ,
उस ओर मेरा ध्यान दिया जाना ही,
मुझे उनमें बदल देता है,
मेरा हर स्वप्न और मेरी हर इच्छा,
उसकी है, जो कि उन पर आधिपत्य रखता है,
-न कि मेरी!
अपना धरातल, मैं तो स्वयं ही हूँ,
मैं बस साक्षी हूँ,
-अपनी स्वयं की यात्रा का ।
विविध दिशाओं की ओर गतिशील,
और अकेला,
मैं नहीं महसूस कर सकता,
-अपने-आपको,
कि कहाँ हूँ मैं!
और यही कारण है,
कि पढ़ता हूँ,
एक अजनबी की तरह,
अपने अस्तित्व के पृष्ठों को मैं,
वह जो होनेवाला है,
मैं उसे होने से नहीं रोक सकता,
जो गुज़र चुका, उसे मैं भूल जाता हूँ,
जो कुछ भी मैं पढ़ता हूँ,
उसे हाशिए पर नोट कर देता हूँ,
जो भी सोचा, जो भी महसूस किया,
दोबारा उसे पढ़ते हुए कहता हूँ,
"क्या यह मैं था?"
भगवान जाने!
क्योंकि उसने ही इसे लिखा है ।
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फ़र्नांडो पेसोवा की पोर्चुगीज़ कविता
हिंदी अनुवाद
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मुझे नहीं पता, कितनी हैं मेरी अस्मिताएँ, ..
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मुझे नहीं पता, कितनी हैं मेरी अस्मिताएँ, ..
हर पल बदलता गया हूँ मैं,
अपने आपको हमेशा अजनबी महसूस करते हुए,
कभी नहीं देखा, या पाया अपने आपको मैंने,
इतना सब होते हुए भी, एक ही तो है अस्मिता मेरी,
जिनकी होती हैं अनेक अस्मिताएँ, उन्हें शांति नहीं मिलती,
वह, जो कि देखता है, वही होता है, जिसे कि वह देखता है,
वह, जो कि वह महसूस करता है,
-वह नहीं होता, जिसे कि वह महसूस करता है,
मैं जो हूँ और जिसे मैं कि देखता हूँ,
उस ओर मेरा ध्यान दिया जाना ही,
मुझे उनमें बदल देता है,
मेरा हर स्वप्न और मेरी हर इच्छा,
उसकी है, जो कि उन पर आधिपत्य रखता है,
-न कि मेरी!
अपना धरातल, मैं तो स्वयं ही हूँ,
मैं बस साक्षी हूँ,
-अपनी स्वयं की यात्रा का ।
विविध दिशाओं की ओर गतिशील,
और अकेला,
मैं नहीं महसूस कर सकता,
-अपने-आपको,
कि कहाँ हूँ मैं!
और यही कारण है,
कि पढ़ता हूँ,
एक अजनबी की तरह,
अपने अस्तित्व के पृष्ठों को मैं,
वह जो होनेवाला है,
मैं उसे होने से नहीं रोक सकता,
जो गुज़र चुका, उसे मैं भूल जाता हूँ,
जो कुछ भी मैं पढ़ता हूँ,
उसे हाशिए पर नोट कर देता हूँ,
जो भी सोचा, जो भी महसूस किया,
दोबारा उसे पढ़ते हुए कहता हूँ,
"क्या यह मैं था?"
भगवान जाने!
क्योंकि उसने ही इसे लिखा है ।
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