August 05, 2015

आज की कविता - इत्ती सी हँसी ...

आज की कविता
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इत्ती सी हँसी ...
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इत्ती सी हँसी भी काफ़ी है,
जीने के लिए, मरने के लिए,
जब शिशु थे, तो पाई थी,
लोगों को हँसाया करते थे,
जब बड़े हुए तो खोने लगी,
सबको भरमाते रहते थे,
जब पैसा पद सम्मान मिला,
इत्ती सी हँसी भी बची नहीं,
जीवन की आपाधापी में
जाने गिरकर खो गयी कहीं,
इत्ती सी हँसी को तरस गये,
तो त्यागी सारी मोह ममता,
इत्ती सी हँसी फ़िर लौट आई,
जब सबमें नज़र आई समता,
दुःख में सुख में, हानि-लाभ में,
रोग-शोक में, यश-अपयश में,
पशु-पक्षी चींटी हाथी में,
दुश्मन में या फ़िर साथी में,
इत्ती सी हँसी बस शेष रही,
इत्ती सी हँसी भी काफ़ी है,
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