September 26, 2014

आज की कविता / फ़र्क / 26/09/2014

आज की कविता
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फ़र्क

© विनय वैद्य, उज्जैन 26/09/2014
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ऊसर में वो भी बोते हैं,
मैं भी ऊसर में बोता हूँ ।

वो उम्मीदों की फ़सलें बोएँ,
वो सिक्कों की फ़सलें बोएँ
मैं स्वेदकणों को बीज बनाकर,
सूखी धरती में बोता हूँ ।

वो खून से सींचें खेतों को,
नफ़रत की खादें डालें,
मैं अश्रुकणों को बून्द बून्द,
प्यासी धरती में बोता हूँ ।

उनके खेतों में उगता सोना,
कनक कनक से मोहित वे,
मैं कण कण प्यार उगाता हूँ,
कण कण धरती में बोता हूँ,

ऊसर में वो भी बोते हैं,
मैं भी ऊसर में बोता हूँ ।
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