July 09, 2011

श्रीरामरक्षास्तोत्रम् Shri Ramrakshastotram.

~~~~~~~ ॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥ ~~~~~~~~
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  ॐ अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः 
श्रीसीता-रामचन्द्रो  देवता अनुष्टुप् छन्दः  सीता शक्तिः 
श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्री रामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षा-
स्तोत्रजपे विनियोगः ।
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  इस रामरक्षा-स्तोत्र-मन्त्र के बुधकौशिक ’ऋषि’ हैं ।
सीता एवं रामचन्द्र ’देवता’ हैं, अनुष्टुप् ’छन्द’ है, सीता
’शक्ति’ हैं, श्रीमान् हनुमान् ’कीलक’ हैं, तथा श्रीरामचन्द्र
जी की प्रसन्नता के लिये  रामरक्षा-स्तोत्र  के जप में 
’विनियोग’ किया जाता है ।
~~

                 ॥  अथ ध्यानम् ॥


ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं 
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं  दधतमुरुजटामण्डलं  रामचन्द्रं  ॥
~~
ध्यान - जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्धपद्मासन
से विराजमान हैं, जिनके प्रसन्न नयन नूतन कमलदल 
से स्पर्धा करते तथा वामभाग में विराजमान श्रीसीताजी 
के मुखकमल से मिले हुए हैं, उन आजानुबाहु, मेघश्याम,
नाना प्रकार के अल्ङ्कारों से विभूषित तथा विशाल जटा
जूटधारी श्रीरामचन्द्र का ध्यान (करें) ।
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                       ॥  स्तोत्रम् ॥
चरितं      रघुनाथस्य      शतकोटिप्रविस्तरम्  ।
एकैकमक्षरं     पुंसां         महापातकनाशनम्  ॥१॥
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श्रीरघुनाथजी का चरित्र अत्यन्त विशद विस्तारवाला,
शतकोटि विस्तारयुक्त, अर्थात् अगाध है, और उसका 
प्रत्येक अक्षर ही मनुष्य के बड़े से बड़े पापों का नाश कर
देता है ।...॥१॥
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ध्यात्वा    नीलोत्पलश्यामं   रामं  राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्षमणोपेतं            जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं             नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया      जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं      विभुम् ॥३॥
रामरक्षां    पठेत्प्राज्ञः    पापघ्नीं     सर्वकामदाम् ।
शिरो   मे   राघवः   पातु   भालं   दशरथात्मजः ॥४॥
~~
  जो नीलकमल-दल के समान श्यामवर्ण, कमलनयन,
जटाओं के मुकुट से सुशोभित, हाथों में खड्ग, तूणीर, 
धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसों के संहारकारी 
तथा संसार की रक्षा के लिये   अपनी लीला से ही अवतीर्ण 
हुए हैं, अजन्मा और सर्वव्यापक  भगवान् राम का जानकी 
और लक्षमणजी  के सहित स्मरण  कर, प्राज्ञ पुरुष, इस 
सर्वकामप्रदा और पाप-विनाशिनी,रामरक्षा का पाठ करे ।
मेरे सिर की रक्षा राघव तथा ललाट की
दशरथात्मज रक्षा करें ।... ॥२-४॥
~~
कौसल्येयो   दृशौ   पातु   विश्वामित्रप्रियः   श्रुती  ।
घ्राणं    पातु   मखत्राता    मुखं   सौमित्रवत्सलः ॥५॥
~~
  कौसल्यानंदन नेत्रों की रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय कानों की, 
एवं यज्ञरक्षक घ्राण (नासिका) की और सौमित्रवत्सल मुख 
की रक्षा करें ।... ॥५॥
~~
जिह्वां   विद्यानिधिः   पातु   कण्ठं   भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ   दिव्यायुधः  पातु  भुजौ   भग्नेशकार्मुकः ॥६॥
~~
  मेरी जिह्वा की रक्षा विद्यानिधि, कण्ठ की भरतवन्दित, कन्धों 
की दिव्यायुध, और भुजाओं की भग्नेशकार्मुक ( महादेवजी का
धनुष तोड़नेवाले) रक्षा करें ।... ॥६॥
~~
करौ   सीतापतिः  पातुं   हृदयं   जामदग्न्यजित् ।  
मध्यं   पातु  खरध्वंसी   नाभिं   जाम्बवदाश्रयः  ॥७॥
~~
 हाथों की  सीतापति, हृदय की जामदग्न्यजित् ( परशुरामजी 
को जीतनेवाले ), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नामक राक्षस 
का नाश करनेवाले, और नाभि की जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान् 
के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ।... ॥७॥
~~
सुग्रीवेशः   कटी   पातु   सक्थिनी   हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू    रघुत्तमः    पातु     रक्षःकुलविनाशकृत्  ॥८॥
~~
  कटि की  सुग्रीवेश (सुग्रीव के स्वामी), सक्थियों की हनुमत्
-प्रभु, और ऊरुओं की राक्षसकुलविनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें ।
...॥८॥
~~
जानुनी   सेतुकृत्पातु   जङ्घे    दशमुखान्तकः ।
पादौ   विभीषणश्रीदः   पातु   रामोऽखिलं  वपुः ॥९॥
~~
  जानुओं की सेतुकृत्, जङ्घाओं की दशमुखान्तक ( रावण 
का अंत करनेवाले ), चरणो की विभीषणश्रीद ( विभीषण को 
ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ), एवं सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा 
करें ।...॥९॥
~~
एतां  रामबलोपेतां   रक्षां   यः   सुकृती  पठेत् ।
स  चिरायुः  सुखी  पुत्री  विजयी  विनयी  भवेत् ॥१०॥
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जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न इस रक्षा का पाठ 
करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनय-
सम्पन्न हो जाता है ।...॥१०॥
~~
पाताल-भूतल-व्योमचारिणश्छद्मचारिणः            ।
न   दृष्टुमपि   शक्तास्ते    रक्षितं     रामनामभिः ॥११॥
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वे जीव पाताल, पृथ्वी, अथवा आकाश  में विचरते हैं, और
वे भी जो छद्मवेश से घूमते रहते हैं, रामनामों से सुरक्षित 
मनुष्य को देखने में भी असमर्थ होते हैं ।...॥११॥
~~
रामेति   रामभद्रेति   रामचन्द्रेति   वा    स्मरन् ।
नरो  न  लिप्यते   पापैर्भुक्तिं  मुक्तिं  च  विन्दति ॥१२॥
~~
  ’राम’, ’रामभद्र’, रामचन्द्र’ इन  नामों का स्मरण करने  
से मनुष्य पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष को 
भी प्राप्त कर लेता है ।...॥१२॥
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जगज्जैत्रेकमन्त्रेण            रामनाम्नाभिरक्षितं ।
यः   कण्ठे   धारयेत्तस्य   करस्थाः   सर्वसिद्धयः ॥१३॥
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जो पुरुष जगत् को विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र रामनाम 
से सुरक्षित इस स्तोत्र को कण्ठ में धारण करता है, ( अर्थात् 
से कण्ठस्थ कर लेता है ), सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत 
हो जाती हैं ।... ॥१३॥
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वज्रपञ्जरनामेदं    यो    रामकवचं      स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः     सर्वत्र    लभते    जयमङ्गलम् ॥१४॥
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जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस कवच का स्मरण करता है, 
उसकी आज्ञा का कहीं उल्लङ्घन नहीं होता, और उसे सर्वत्र 
जय तथा मङ्गल की प्राप्ति होती है ॥... (१४)
~~
आदिष्टवान्यथा    स्वप्ने   रामरक्षामिमां    हरः ।
तथा    लिखित्वान्प्रातः    प्रबुद्धो   बुधकौशिकः ॥१५॥
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श्रीशङ्कर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस रामरक्षा का जिस 
प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रातःकाल में जागने पर, 
बुधकौशिक ऋषि ने इसे लिख लिया ॥...॥१५॥
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आरामः   कल्पवृक्षाणां    विरामः   सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां  रामः   श्रीमान्स  नः  प्रभुः  ॥१६॥
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जो मानो कल्पवृक्षों के सुखाश्रय हैं, जो समस्त आपदाओं 
का अन्त हैं, और जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हैं, वे श्री-
मान् श्रीराम हमारे प्रभु हैं ।...॥१६॥
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तरुणौ    रूपसम्पन्नौ    सुकुमारौ   महाबलौ   ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ         चीरकृष्णाजिनाम्बरौ  ॥१७॥
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फलमूलाशिनौ    दान्तौ   तापसौ  ब्रह्मचारिणौ   ।
पुत्रौ     दशरथस्यैतौ    भ्रातरौ    रामलक्षमणौ    ॥१८॥
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शरण्यौ   सर्वसत्त्वानां   श्रेष्ठौ  सर्वधनुष्मताम्     ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ    त्रायेतां      नो   रघूत्तमौ    ॥१९॥
~~
जो तरुण अवस्थावाले, रूपवान्, सुकुमार, महाबली हैं, 
कमल के समान विशाल नेत्रवाले, चीरवस्त्र और कृष्ण-
मृगचर्मधारी, फल-मूल का आहार करनेवाले, संयमी, 
तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवों को शरण देनेवाले हैं, 
समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ, और राक्षसकुल का नाश 
करनेवाले हैं, वे रघुश्रेष्ठ, दशरथपुत्र राम और लक्ष्मण 
दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।...॥१७,१८,१९॥ 
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आत्तसाजधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसंगिनौ      ।
रक्षणाय मम रामलक्षमणावग्रतःपथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
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जिन्होंने सन्धान किया हुआ धनुष ले रखा है, जो बाण का 
स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षयबाणों से युक्त तूणीर लिये हुए हैं, 
वे श्रीराम और श्री लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिये मार्ग में 
सदा मेरे आगे चलें ।...॥२०॥
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सन्नद्धः   कवची   खड्गी   चापबाणधरो   युवा  ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च   रामः    पातु   सलक्ष्मणः ॥२१॥
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सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथ में खड्ग लिये, धनुष-बाण 
धारण किए, तथा युवा अवस्थावाले भगवान् श्रीराम 
लक्ष्मण जी सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथों 
की रक्षा करें ।...॥२१॥
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रामो    दाशरथि:   शूरो   लक्ष्मणानुचरो  बली  ।
काकुत्स्थः  पुरुषः   पूर्णः   कौसल्येयौ  रघूत्तमः  ॥२२॥
~~
वेदान्तवेद्यो       यज्ञेशः        पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः           श्रीमानप्रमेयपराक्रमः   ॥२३॥
~~
इत्येतानि   जपन्नित्यं    मद्भक्तः    श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं    पुण्यं  सम्प्राप्नोति  न  संशयः  ॥२४॥
~~
(भगवान् कहते हैं,) राम, दाशरथि, शूर, लक्षमणानुचर, बली, 
काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, 
पुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान्, एवं अप्रमेयपराक्रम, इन 
नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्व-
मेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त कर लेता है, इसमें सन्देह 
नहीं ।......॥२२,२३,२४॥
~~
रामं     दूर्वादलश्यामं    पद्माक्षं     पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति   नामभिदिव्यैर्न   ते   संसारिणो  नराः ॥२५॥
~~
जो मनुष्य  इन दिव्य नामों से दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, 
कमलनयन, पीताम्बरधारी, भगवान् राम का स्तवन करते
हैं, वे संसारचक्र में नहीं पड़ते ।...॥२५॥
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रामं   लक्ष्मणपूर्वजं   रघुवरं  सीतापतिं  सुन्दरं 
काकुत्स्थं  करुणार्णवं  गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकं ।
राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं  
वन्दे लोकाभिरामं  रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
~~
लक्ष्मणजी के ज्येष्ठ, रघुकुल में श्रेष्ठ, सीताजी के स्वामी, 
अति सुन्दर, काकुत्स्थकुलनन्दन, करुणासागर, गुणनिधान,
ब्राह्मणभक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथपुत्र, 
श्यामलवर्ण और शान्तमूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल
तिलक, राघव, तथा रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वन्दना 
करता हूँ ।...॥२६॥
~~
रामाय    रामभद्राय    रामचन्द्राय    वेधसे ।
रघुनाथाय   नाथाय   सीताया  पतये   नमः ॥२७॥
~~
राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधातृस्वरूप, रघुनाथ, प्रभु, सीतापति 
को नमस्कार है ।...॥२७॥
~~
श्रीराम राम रघुनन्दन रामराम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
~~
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरताग्रज भगवान् राम !
हे रणधीर प्रभु राम ! आप मेरे आश्रय होइये ॥२८॥
~~
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि 
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि 
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ .......(२९)
~~
मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों का मन में स्मरण करता हूँ,
मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों का वाणी से कीर्तन करता हूँ,
मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों पर सिर रखकर प्रणाम करता
हूँ, और मैं श्रीरामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ ।...
......(२९)
~~
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-
र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने  ॥३०॥
~~
राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं, और
राम ही मेरे सखा हैं । दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं,
उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता, बिलकुल नहीं
जानता ।.... ॥३०॥
~~
दक्षिणे  लक्ष्मणो  यस्य  वामे  तु  जनकात्मजा ।
पुरतो   मारुतिर्यस्य  तं      वन्दे   रघुनन्दनम्  ॥३१॥
~~
जिनकी दायीं ओर लक्ष्मणजी, बायीं ओर जानकी जी, और
सामने हनुमान् जी विराजमान हैं, उन रघुनाथजी की मैं
वन्दना करता हूँ ।.....॥३१॥
~~
लोकाभिरामं   रणरङ्गधीरं 
राजीवनेत्रं        रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं   करुणाकरं   तं  
श्रीरामचन्द्रं   शरणं     प्रपद्ये ॥३२॥
~~
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीडा में धीर, कमलनयन,
रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणा के भण्डार हैं, मैं उन
श्रीरामचन्द्रजी की शरण में जाता हूँ ।...॥३२॥
~~
मनोजवं   मारुततुल्यवेगं 
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं    प्रपद्ये ॥३३॥
~~
जिनकी गति मन के समान तीव्र है, और वायु के समान
जिनका वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ
हैं, उन पवननन्दन, वानराग्रगण्य श्रीरामदूत की मैं शरण 
लेता हूँ ।....॥३३॥
~~
कूजन्तं     रामरामेति    मधुरं     मधुराक्षरं ।
आरूह्य  कविताशाखां  वन्दे  वाल्मीकिकोकिलम्  ॥३४॥
~~
कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले ’राम’-राम’
इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकिरूप कोकिल की मैं
वन्दना करता हूँ ।...॥३४॥
~~
आपदामपहर्तारं     दातारं      सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं  श्रीरामं  भूयो  भूयो  नमाम्यहम् ॥३५॥
~~
आपदाओं को हर लेनेवाले, तथा सब प्रकार की सम्पत्तियों
को प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् राम को बारम्बार
नमस्कार करता हूँ ।...॥३५॥
~~
भर्जनं    भवबीजानामर्जनं    सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं   यमदूतानां   रामरामेति    गर्जनम् ॥...॥३६॥
~~
’राम-राम’ का उद्घोष संसारबीज को भून डालनेवाला है, और
भक्त को भवसागर से पार कर देता है । समस्त सुख-सम्पत्ति
की प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूतों को भयभीत कर देनेवाला 
है ।...॥३६॥
~~
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे 
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥...॥३७॥
~~
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त होते हैं । मैं 
लक्ष्मीपति भगवान् राम का भजन करता हूँ । मैं उन श्री 
रामचन्द्र को प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने सम्पूर्ण राक्षससेना 
का ध्वंस कर दिया था । राम से बड़ा अन्य कोई आश्रय 
नहीं । मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ । मेरा चित्त सर्वदा 
राम में ही लीन रहे, हे राम ! आप मेरा उद्धार कीजिए ।
...॥३७॥
~~ 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम  तत्तुल्यं  रामनाम वरानने ॥....॥३८॥
~~
(श्रीमहादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं,) :
हे सुमुखि ! रामनाम विष्णुसहस्रनाम के तुल्य है । मैं सदा
’राम, राम, राम’ इस प्रकार के मनोरम राम-नाम में ही 
रमण करता हूँ ।...॥३८॥
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इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम्
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