July 21, 2011

~~इस शहर से जाते हुए~~


इस शहर से जाते हुए

0502000
© Vinay Vaidya

#200.*

इस शहर से जाते हुए,
मैं बहुत उदास सा हूँ ।
हाँ मानता हूँ, 
बहुत से दोस्त और महबूब थे यहाँ,
जिनकी यादें लगभग वक़्त-बेवक़्त,
खटखटाती रहेंगी,
दिल के किवाड़,
कभी धीमे से, कभी तेज़ी से,
देती रहेंगी दस्तकें,
उँगलियाँ हवाओं की,
और मैं समझूँगा ’कोई’ है ।
खोलकर देखूँगा,
तो ’कोई’ नहीं वहाँ होगा ।
लौटकर सो जाऊँगा,
ओढ़कर अँधेरे का लिहाफ़,
मिलेगा ’कोई’ कहीं,
सपनों की मेरी दुनिया में,
दो घड़ी बातें दो-चार करके,
फ़िर नये शहर में खोलूँगा आँखें,
फ़िर नये दोस्त, नये महबूब होंगे,
फ़िर नई महफ़िलें सज़ेंगी मग़र,
भूल पाऊँगा न इस शहर को मैं ।
इस शहर से जाते हुए,
मैं बहुत उदास सा हूँ ।
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( * इस पृष्ठ पर यह मेरी ’२०० वी’ ’प्रविष्टि’ है ।
यह कविता मैंने 5 फ़रवरी सन्‌ 2000 की रात्रि में
लिखी थी । जिसमें लिखी थी, वह डायरी तो अब 
मेरे पास नहीं है, लेकिन आज मुझे याद आयी, 
तो स्मृति में जैसी थी, यथावत्‌ लिख रहा हूँ ।)
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शब्दावलि - ’पृष्ठ’ = ’ब्लॉग’, ’प्रविष्टि’ = ’पोस्ट’ । 



2 comments:

  1. ."फ़िर नई महफ़िलें सज़ेंगी मग़र,
    भूल पाऊँगा न इस शहर को मैं ।
    इस शहर से जाते हुए,
    मैं बहुत उदास सा हूँ ।"
    बहुत ही सुन्दर रचना. आपकी स्मृति की दाद देनी होगी. आभार.

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  2. आदरणीय पी.एन.सर,
    आपकी टिप्पणी के लिये आभार,
    एवं धन्यवाद,
    विनय

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