~~ "प्रभु की प्राप्ति कैसे हो सकती है?" ~~
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हमें लगता है कि हम प्रभु शब्द का अर्थ जानते हैं ।
तभी तो उसकी प्राप्ति कैसे होगी इस बारे में पता लगाने की कोशिश करते हैं ।
लेकिन क्या सचमुच हमें प्रभु का ज्ञान है ?
तो पहले हमें यह पता लगाना होगा कि ’प्रभु’ से हमारा क्या मतलब है !
आप तुरंत बोलेंगे, वही, जिसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है,...
अगर आप इसे ’प्रभु’ का ज्ञान समझते हैं तो ऐसे ज्ञान से जो प्रभु मिलेगा,
उसके बारे में कुछ कहना कठिन है, कि उसकी प्राप्ति कैसे होगी ?
लेकिन अगर ’प्रभु’ को आप किसी भौतिक वस्तु के अर्थ में ग्रहण करते हैं,
जैसे टेबल, मकान, धन-संपत्ति, पानी, जमीन, या किसी भौतिक, शारीरिक या
मानसिक ज़रूरत की पूर्ति के साधन के रूप में ग्रहण करते हैं, जैसे भूख-प्यास,
आश्रय, सुरक्षा, आदि, तो इस रूप में जो प्रभु प्राप्त होगा, वह स्वयं ही अस्थायी
होगा, क्या आप ऐसे प्रभु की प्राप्ति करना चाहते हैं ? यदि ’प्रभु’ से आपका तात्पर्य
है मानसिक शान्ति, तो क्या मानसिक शान्ति वास्तव में कोई ऐसी भौतिक
वस्तु है जिसे प्राप्त कर आप जेब में या पूजाघर में, या लॉकर में रख सकेंगे, या
मिल-बाँटकर ’शेयर’ कर सकेंगे ? तो मतलब यह हुआ कि हम ’प्रभु’ या ’शान्ति’
से अपरिचित हैं किन्तु उस बारे में किसी ’विचार’ को उसके विकल्प में ग्रहण
कर बैठते हैं । क्या ’प्रभु’ या ’शान्ति’ का ’विचार’, ’प्रभु’ या ’शान्ति’ का
वास्तविक विकल्प हो सकता है ? और जब तक हम ’विचार’ को ’वस्तु’
समझने की भूल को नहीं देख लेते तब तक ’वस्तु’ की प्राप्ति एक स्वप्न ही
बनी रहती है ।
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