Ego and Alter-Ego
अहं और प्रत्यहं
(अहम् और प्रति-अहम्)
--
अभी इस पोस्ट से कुछ मिनट पहले इसी ब्लॉग में एक कविता लिखी है। पता नहीं क्या लिखते लिखते एकाएक वह कविता लिख दी गई!
मन की ऊपरी सतह पर यद्यपि कविता लिखी जा रही थी किन्तु मन की इस ऊपरी सतह से नीचे कोई था जो चुपचाप इस कविता के रचयिता होने के गर्व से बहुत प्रसन्न था।
जब कविता पूरी हो गई तो ध्यान इस पर गया कि कल - परसों मैंने ईगो / इगो और आल्टर ईगो की जिस प्रकार से विवेचना की थी और उसे परिभाषित किया था, उससे उत्पन्न हुई एक अद्भुत् शान्ति ने मुझे अभी तक अभिभूत कर रखा है। और सब कुछ यद्यपि अक्षरशः वही है, फिर भी सब कुछ नितान्त परिवर्तित भी हो गया है। इसे स्पष्ट करने के लिए मेरे पास कोई व्याख्या नहीं है!
कल मैंने संक्षेप में मेरे इस "आत्म-साक्षात्कार" के बारे में लिखा था कि विचारकर्ता ही ईगो और विचार ही आल्टर ईगो है। यद्यपि मैं न तो विचारकर्ता हूँ और न ही विचार!
विचारकर्ता / विचार मैं नहीं!
आज सुबह से मन में इसी पर ध्यान केन्द्रित था।
और मन फिर भी अपना कार्य अधिक सरलता, स्पष्टता और शान्ति से करता रहा। यद्यपि कभी कभी वह पूरी तरह शब्दरहित भी होता रहता है, और जब विचारकर्ता तथा विचार दोनों ही विलीन हो जाते हैं फिर भी कभी कभी विचार और विचारकर्ता की गतिविधि भी शुरू हो जाती है। इसी मनःस्थिति में इस पर ध्यान गया कि जैसे मनुष्य का अपना ईगो और आल्टर ईगो, - विचारकर्ता और विचार के रूप में उसके ही अन्तर्मन के दो पक्ष होते हैं, और उससे भिन्न और परे के जगत से उनका कोई सबंध नहीं होता, ठीक वैसे ही मनुष्य के सामूहिक मन (consciousness / collective mind) में भी असंख्य विचार, आभासी और काल्पनिक विचारकर्ता को प्रक्षेपित करते हैं, और वह भी पुनः सामाजिक स्तर पर विभिन्न समुदायों और वर्गों में बँटा होता है। यह है मनुष्य की नियति, जिसे परिवर्तित करने, और दुनिया को बदलने का विचार भी जिसका एक अत्यन्त छोटा विचारमात्र होता है।
विचार और विचारकर्ता (जो वस्तुतः एक ही तथ्य है) के बीच के इस संबंध की तुलना (analogy) शरीर और शरीर की छाया से शायद की जा सकती है, जिनके बीच में "मन" नामक वस्तु पेन्डुलम की तरह डोलती रहती है।
"अपनी छाया"
शीर्षक से लिखी जानेवाली कविता इसका ही परिणाम या प्रभाव रहा होगा, और बाद में जिससे मुझे :
Oscar Wilde
की रचना
"अपनी छाया"
का स्मरण हो आया।
यह सब शायद रोचक और संभवतः नितान्त काल्पनिक ही है, बस इतना ही कह सकता हूँ!
***
No comments:
Post a Comment