April 11, 2024

क्षोभ

जटिल आघात प्रवणता क्षोभ प्रभाव

शायद इसे ही अंग्रेजी भाषा में :

Complex Post Trauma  Stress  Disorder 

कहा जाता  होगा!

जब तक स्मृति है तब तक कोई 'अतीत' और 'पहचान' है, जो यद्यपि 'वृत्ति' ही है और 'वृत्तिमात्र' पुनः पतञ्जलि के योगसूत्र साधनपाद के अनुसार --

वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः।।५।।

प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।।६।।

'मन' की ही गतिविधि है जो अनित्य होते हुए भी पुनः पुनः प्रकट और विलीन होती रहती है। इस प्रकार, 'स्मृति' भी अस्थायी स्वप्नावस्था ही है, किन्तु यह जान लेने के बाद में फिर किसी अप्रिय या दुःखद घटना की पुनरावृत्ति की आशंका समाप्त तो नहीं हो जाती, - विशेषरूप से तब जब आपने उन समस्त स्मृतियों और उन स्मृतियोंसे संबद्ध समस्त व्यक्तियों से संबंध-विच्छेद भी क्यों न कर लिया हो। क्योंकि वे अपनी मूढता और दुष्टता त्याग देंगे ऐसी आशा करना व्यर्थ है। यह सब तो उनकी कल्पना में भी नहीं होता होगा, न आप उनका ध्यान इस सच्चाई की ओर आकर्षित ही कर सकते हैं।  इसलिए अतीत में घटित किसी विशेष क्षोभप्रद घटना को विस्मृत कर पाना जीते जी लगभग असंभव ही है। किसी सिद्धांत, तर्क, उदाहरण, नैतिक या तथाकथित धार्मिक उपदेश के आधार पर भले ही मनुष्य स्वयं को सान्त्वना देता रहे, तो भी उस क्षोभ से जीते-जी उसे कोई राहत शायद ही कभी मिल सकती हो।

तथाकथित नैतिकता और धर्म की शिक्षा हमें आग्रह और बलपूर्वक सिखाती है कि किसी से घृणा मत करो, क्रोध मत करो ... ईर्ष्या और द्वेष, हिंसा मत करो, या किसी के प्रति मन में कोई दुर्भावना मत रखो ... आदि आदि। किन्तु जब तक मन (के रूप) में अतीत और अतीत की स्मृति (जो कि एक ही घटना / यथार्थ के दो नाम भर हैं) नामक वृत्ति है तब तक उसके आघात से उत्पन्न क्षोभ के प्रभाव से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। हाँ यह अवश्य हो सकता है कि मनुष्य उन व्यक्तियों से इतनी दूर चला जाए कि उनसे संपर्क तक हो पाना, उनका पुनः सामना तक हो पाना ही असंभव हो जाए। मैं नहीं कह सकता कि कितने लोग यह सोच / कर पाते हैं। मेरे अपने मन की स्थिति यह है कि जब मेरे अतीत से जुड़ा ऐसा कोई व्यक्ति मेरा ब्लॉग न सिर्फ पढ़ता या देखता है बल्कि उस बहाने से किसी भी तरह से मुझसे संबंधित होना चाहता है तो उसके इस निर्लज्ज और धृष्ट दुस्साहस करने पर मैं क्रोध से पागल ही हो जाता हूँ।

यह मेरा जीवन है जिसे बिना कोई अपराध-बोथ हुए मैं जीता रहा हूँ और जीता रहूँगा।

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