कविता 30-09-2023
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न जीते रहने में राहत है,
न मर जाने की चाहत है,
उलझन में, कशमकश में,
हृदय-मन दोनों आहत हैं।
कोई क्यों पूछे मुझसे,
किसे मैंने कभी पूछा,
किसी का हक मुझ पर क्या,
किसी पर मेरा क्या हक है?
लिखते रहना, पढ़ते रहना,
कहते रहना, सुनते रहना,
निहायत ग़ैर मौजूँ है,
शग़ल ये शौक नाहक है।
समझने की नहीं हैं ये,
न समझाने की ये बातें हैं,
उचटी हुई नींद में जैसे,
पागलपन की बातें हैं!
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