Self-knowledge and Self-Awareness
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आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार
का क्या महत्व है?
यह पोस्ट सीधे ही 'उसके नोट्स' से ही यथावत् उद्धृत है।
"तो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और व्यक्तिगत भाग्य जैसा कुछ कहीं नहीं होता। उस पत्थर फेंकनेवाले ने एक काम तो यह किया, या कहें कि उसके माध्यम से हुआ कि उसने न जाने किस प्रेरणा या शक्ति के दबाव में मूलतः अंग्रेजी और मराठी भाषा में प्रस्तुत एक पुस्तक :
I AM THAT सुखसंवाद
का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर दिया, जिसे
चेतना, मुम्बई ने :
अहं ब्रह्मास्मि
शीर्षक से प्रकाशित कर दिया।
उक्त पुस्तक की भूमिका या परिशिष्ट में कहीं यह उल्लेख है कि जब तक कोई भी मनुष्य आत्म-साक्षात्कार क्या है, इसे नहीं जान लेता तब तक वह उन अनेक, अज्ञात शक्तियों के हाथों में एक खिलौना ही होता है जो सतत उसे परिचालित करती रहती हैं और वह चाहे जितना भी प्रयास क्यों न कर ले, उन शक्तियों को स्वरूपतः कभी नहीं जान सकता, तब तक उसे उसके जीवन में कभी शान्ति नहीं प्राप्त हो सकती है।
वह कभी नहीं जान सकता है कि क्या कहीं कोई ईश्वर है या नहीं, जो उसे शुभ अशुभ कर्मों को करने की प्रेरणा और उन कर्मों का शुभ अशुभ फल देता हो।
यद्यपि वह उन शक्तियों को "देवता" के रूप में मानकर उनकी उपासना और उनसे विभिन्न अभीप्सित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना भी कर सकता है, किन्तु उसे यह कभी नहीं पता चल सकता है कि उसे उनसे जो कुछ प्राप्त होता हुआ प्रतीत होता है वह उसकी उपासना का फल है या उसका कोई दूसरा कारण है, या यह भी, कि क्या कर्म और उसके फल के बीच कोई संबंध होता भी है कि नहीं।
हाँ, श्रीमद्भगवद्गीता में भी अध्याय पाँच के कुछ श्लोकों 14, 15, 16, 17 में यही सब तो कहा गया है!
तो फिर मनुष्य किस प्रकार से स्वतन्त्र है!
प्रत्येक ही मनुष्य इसके लिए सदैव ही स्वतन्त्र है कि वह आत्मा के स्वरूप का अनुसन्धान कर आत्म-साक्षात्कार कर ले।
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