निजात / कविता
ज़िन्दगी मर्ज़ है इक लाइलाज,
नहीं है मौत भी दवा / निजात,
अगर यक़ीं है मज़हब-किताब पर,
हुआ फ़ज़ल तो नसीब होगी क़ब्र,
और फिर बस इंतज़ार करते रहना
ताक़यामत करवटें बदलते हुए,
फिर भी अंदेशा तो ये रहेगा ही,
फ़ैसला क्या होगा आख़री रोज़,
कैसा मुश्क़िल है सफ़र ज़िन्दगी,
मौत के बाद भी निजात नहीं,
इससे बेहतर तो शायद यह होगा,
जैसे हो इस दश्त से निकल आओ,
पता लगा लो कि कौन जीता है,
पता लगा लो कि मरता है कौन,
जब तलक वहम है अपने होने का,
तब तलक ज़िन्दगी रहेगी मर्ज़,
ये वहम भी टूट जाएगा जिस दिन,
मौत से पहले ही होगी निजात ।
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ज़िन्दगी मर्ज़ है इक लाइलाज,
नहीं है मौत भी दवा / निजात,
अगर यक़ीं है मज़हब-किताब पर,
हुआ फ़ज़ल तो नसीब होगी क़ब्र,
और फिर बस इंतज़ार करते रहना
ताक़यामत करवटें बदलते हुए,
फिर भी अंदेशा तो ये रहेगा ही,
फ़ैसला क्या होगा आख़री रोज़,
कैसा मुश्क़िल है सफ़र ज़िन्दगी,
मौत के बाद भी निजात नहीं,
इससे बेहतर तो शायद यह होगा,
जैसे हो इस दश्त से निकल आओ,
पता लगा लो कि कौन जीता है,
पता लगा लो कि मरता है कौन,
जब तलक वहम है अपने होने का,
तब तलक ज़िन्दगी रहेगी मर्ज़,
ये वहम भी टूट जाएगा जिस दिन,
मौत से पहले ही होगी निजात ।
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