इस रात की सुबह ....
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पूरब में 'तितली' पंख फड़फड़ाती है,
सागर से बीस-बीस फुट ऊँची लहरें,
कर देती हैं, 'नई' सभ्यता को तबाह,
ध्वंस का उल्लास नहीं बख्शता है,
किसी ऊँची इमारत को, टॉवर को,
'तितली' जानती है, कब बदला लेना,
बड़े-बड़े होर्डिंग्स, झूलते गिरते हैं,
और हवा का ताण्डव, उलट देता है,
सजावटी चेहरों पर चढ़ी नक़ाब ,
मी टू, यू टू, दे टू, ही टू, वी ऑल,
दौड़ते हैं ढूँढते हैं, छिपने की जगह,
तितली नहीं पता कितनी नाज़ुक है,
उसके पंखों के वार कितने कातिल हैं,
उड़ते उड़ते ही बिखेर देगी टुकड़े टुकड़े,
उड़ा देगी धज्जियाँ, लिपे पुते चेहरों की,
कुछ इस तरह कि न पहचान सकेंगे,
और न दिखा सकेंगे, किसी को भी,
मी टू, यू टू, दे टू, ही टू, वी ऑल,
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'ध्वंस का उल्लास'
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पूरब में 'तितली' पंख फड़फड़ाती है,
सागर से बीस-बीस फुट ऊँची लहरें,
कर देती हैं, 'नई' सभ्यता को तबाह,
ध्वंस का उल्लास नहीं बख्शता है,
किसी ऊँची इमारत को, टॉवर को,
'तितली' जानती है, कब बदला लेना,
बड़े-बड़े होर्डिंग्स, झूलते गिरते हैं,
और हवा का ताण्डव, उलट देता है,
सजावटी चेहरों पर चढ़ी नक़ाब ,
मी टू, यू टू, दे टू, ही टू, वी ऑल,
दौड़ते हैं ढूँढते हैं, छिपने की जगह,
तितली नहीं पता कितनी नाज़ुक है,
उसके पंखों के वार कितने कातिल हैं,
उड़ते उड़ते ही बिखेर देगी टुकड़े टुकड़े,
उड़ा देगी धज्जियाँ, लिपे पुते चेहरों की,
कुछ इस तरह कि न पहचान सकेंगे,
और न दिखा सकेंगे, किसी को भी,
मी टू, यू टू, दे टू, ही टू, वी ऑल,
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'ध्वंस का उल्लास'
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