August 30, 2016

भुजङ्ग

भुजङ्ग
--
क्षमा शोभती उस भुजङ्ग को,
जिसके पास गरल हो,
संधि-वचन संपूज्य उसी का,
जिसमें शक्ति-विजय हो ।
--
धरती के भुजङ्ग बाँध लेते हैं,  शिव को,
भर बाहों में करते हैं उनसे आलिंगन !
सुख इतना पाते हैं वे विषधर भी,
भूल जाते हैं वे फिर शीतल चंदन !
--
करते रहते भ्रमण सदा चतुर्दिक्
हर ओर सन्निकट शिव के,
डूबे निमग्न होकर जैसे समाधि में ,
वे  उग्र सशक्त शान्त रूप शंकर के ।
--

No comments:

Post a Comment