भुजङ्ग
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क्षमा शोभती उस भुजङ्ग को,
जिसके पास गरल हो,
संधि-वचन संपूज्य उसी का,
जिसमें शक्ति-विजय हो ।
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धरती के भुजङ्ग बाँध लेते हैं, शिव को,
भर बाहों में करते हैं उनसे आलिंगन !
सुख इतना पाते हैं वे विषधर भी,
भूल जाते हैं वे फिर शीतल चंदन !
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करते रहते भ्रमण सदा चतुर्दिक्
हर ओर सन्निकट शिव के,
डूबे निमग्न होकर जैसे समाधि में ,
वे उग्र सशक्त शान्त रूप शंकर के ।
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क्षमा शोभती उस भुजङ्ग को,
जिसके पास गरल हो,
संधि-वचन संपूज्य उसी का,
जिसमें शक्ति-विजय हो ।
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धरती के भुजङ्ग बाँध लेते हैं, शिव को,
भर बाहों में करते हैं उनसे आलिंगन !
सुख इतना पाते हैं वे विषधर भी,
भूल जाते हैं वे फिर शीतल चंदन !
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करते रहते भ्रमण सदा चतुर्दिक्
हर ओर सन्निकट शिव के,
डूबे निमग्न होकर जैसे समाधि में ,
वे उग्र सशक्त शान्त रूप शंकर के ।
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