August 25, 2016

ब्रजभाषा का पद्य और संस्कृत अनुवाद !

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी पर .. 
ब्रजभाषा का एक पद्य और संस्कृत अनुवाद !
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"मथुरा के कारे, फिरि जमुना के धारे, जिन्ह पूतना को तारे, मद कालिय पछारे हैं
गिरिवर धारे, जिन्ह कंसहू को मारे, रथ पारथ हँकारे, महाभारत सँवारे हैं 
सोई रतनारे जसुमति के दुलारे जुग नैनन के तारे सारे गोकुल के प्यारे हैं 
नन्दजू के द्वारे लखो भोरे-भिनुसारे सब सुरन्ह पधारे नभ छाए जयकारे हैं" 
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११:३१ अपराह्न, बुधवार, २४ अगस्त २०१६, भुवनेश्वर, ओडिशा
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मथुरायाः श्याम हे !

"मथुराकाराजात !..."



यमुनायाः धारक !
पूतनायाः तारक !
कालीयमदमर्दक  !
गिरिवरस्य धारक !
कंसस्य मारक !
पार्थसारथि हे !
महाभारता-नायक !
सैव रत्नार हे !
यशोदाया:लाल-ललन !
युगलनयनतारकौ !
गोकुलस्य प्रिय हे !
नन्दस्य द्वारे अद्य !
उषस्-प्रभाते सद्य !
आगताः सुरा: सर्वे !
जयकाराव्याप्तानि नभे !!
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टिप्पणी 
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रोचक भूल हो गई मुझसे ! 
मूल पद्य के रचयिता ने मेरा ध्यान और दिलाया कि की 'मथुरा के कारे' से उनका आशय 'मथुरा की कारा (कारागार) में जन्मे' था !
मैं ’कारा’ को ’काला’ समझ बैठा !

ख़ैर, संशोधन प्रस्तुत है :
इस भूल की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद !
॥ श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ! ॥ 

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