August 18, 2016

दिल का हिस्सा!

सुनीताजी की एक खूबसूरत कविता,
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नदी के हिस्से में सिर्फ शोर है
पहाड़ के हिस्से में ख़ामोशी
इंसानों के हिस्से में दिल है
पर अलग अलग रंग के दिल
उनमे से कुछ रंग शोर करते हैं
कुछ खामोश रहते हैं
अपने आँगन में इंसानों के तमाशे देख
नदी और पहाड़ भी अब
*एक्टिंग* की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं
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इसे मैं यह रूप देना चाहता हूँ !
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नदी के हिस्से में सिर्फ़ शोर है,
पहाड़ के हिस्से में सिर्फ़ खामोशी,
इंसानों के हिस्से में दिल है,
दिल के हिस्से में पहाड़-नदी,
दिल ये पहचान तक नहीं पाता,
कहाँ से शुरु होते हैं, कहाँ वे ख़त्म,
वो पहाड़ जो खामोश हुआ करते हैं,
वो नदी जो शोर हुआ करती है,
दिल के हिस्से में क़ाश न होता,
और कुछ भी, ... सिवा उन दोनों के !
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