आज की कविता
--
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर
--
उसने कहा था :
अपने जीवन में कई बार ऐसा लगा कि औरत होना मेरा एक ज़ुर्म था... !
जवाब में ये दो पंक्तियाँ बन पड़ीं :
वह न तुम्हारा ज़ुर्म था कोई और न कोई मज़बूरी ।
वह केवल गहरी करुणा थी, जिससे तुम जनमी नारी!
--
No comments:
Post a Comment