March 07, 2016

आज की कविता / नज़्म

आज की कविता / नज़्म
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फ़िक्र होती है तो होने दो उसे,
फ़िक्र करने लगो ये ठीक नहीं ।
प्यार होता है तो होने दो उसे,
प्यार करने लगो ये ठीक नहीं ।
बहा ले जाए रवानी तो बह जाओ उसमें,
बहते दरिया में उतरने लगो ये ठीक नहीं ।
ये हयात, ये वज़ूद और ये हस्ती,
इससे बचने लगो, ये ठीक नहीं ।
रोग आदत है ज़िस्म की जैसे,
प्यार वैसे है रोग मन का एक,
प्यार होता है तो होने दो उसे,
प्यार करने लगो ये ठीक नहीं ।
प्यार जैसे है एक रोग मन का,
वैसे होते हैं रोग और कई ।
कभी अकेले किसी भी इंसां को,
कभी कुछ को, तो कभी सबको भी ।
रोग को आदत मत बन जाने दो,
और आदत को मत बनने दो रोग ।
फ़िक्र होती है तो होने दो उसे,
फ़िक्र करने लगो ये ठीक नहीं ।
प्यार होता है तो होने दो उसे,
प्यार करने लगो ये ठीक नहीं ।
वैसे अच्छी हो या बुरी आदत,
जैसे आई थी चली जाती है,
छोड़ जाती है तनहाई पीछे,
बनके तनहाई ठहर भी जाती है ।
क़ुफ्र होता है तो हो जाने दो क़ुफ्र,
क़ुफ्र करने लगो, ये ठीक नहीं ।
एक तनहाई वो भी थी जब तुम न थे,
एक तनहाई वो भी थी जब मैं न था,
एक वो भी तो थी कभी ज़रूर,
हमसे पहले कि जब हम न थे ।
एक दिन द्वार खटखटाएगी,
लौट जाएगी हमें लेकर,
जहाँ अपनी ख़बर न होगी हमें,
सुक़ूनदेह, पुरसुक़ून तनहाई ।
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