आज की कविता
02-01-2016.
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शिल्पकार
कविता,
कोई शग़ल नहीं,
एक दोधारी तलवार है,
जिसे चलाते हुए कवि,
करता है आहत खुद को,
और होता है आहत खुद भी,
रचता भी है वह खुद को,
और रचा जाता भी है वही खुद,
जैसे छैनी हथौड़ी चलाता हुआ,
कोई मूर्तिकार,
उभारता है शिल्प कोई,
उकेरता है खुद को भी ।
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02-01-2016.
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शिल्पकार
कविता,
कोई शग़ल नहीं,
एक दोधारी तलवार है,
जिसे चलाते हुए कवि,
करता है आहत खुद को,
और होता है आहत खुद भी,
रचता भी है वह खुद को,
और रचा जाता भी है वही खुद,
जैसे छैनी हथौड़ी चलाता हुआ,
कोई मूर्तिकार,
उभारता है शिल्प कोई,
उकेरता है खुद को भी ।
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