आज की कविता
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हवा में हर तरफ़ ज़हर है,
कभी जो गाँव था शहर है ।
शीत की, उमस की या गर्मी की,
ग़म की गुस्से की नफ़रत की लहर है ।
आप भी हाथ धो लिया कीजै,
बहती गंगा की ही, नहर है ।
रात गहरी हुई तो ये सोचा,
बीत जाएगी फ़िर सहर है ।
और बीते न बीत पाती हो,
समझ लो वक़्त का क़हर है ।
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हवा में हर तरफ़ ज़हर है,
कभी जो गाँव था शहर है ।
शीत की, उमस की या गर्मी की,
ग़म की गुस्से की नफ़रत की लहर है ।
आप भी हाथ धो लिया कीजै,
बहती गंगा की ही, नहर है ।
रात गहरी हुई तो ये सोचा,
बीत जाएगी फ़िर सहर है ।
और बीते न बीत पाती हो,
समझ लो वक़्त का क़हर है ।
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