मत पूछो,
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सौजन्य और © भानुश्री पानेरी
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मत पूछो इस दुनिया में,
किसने क्या-क्या बांटा है,
किसने मंदिर मस्जिद में,
ऊपरवाले को बांटा है ।
जाने क्यूं और किस हक से
टुकडे कर देश को बांटा है ।
ये तेरा ये मेरा ये है उसका,
अपने लालच या फ़िर डर से,
हमने सब कुछ बांटा है ।
जिस आंगन खेले दो भाई,
गुल्ली-डंडा, बचपन में,
दीवार खडी है उस आंगन,
जाने कब किसने बांटा है ।
साल के बांटे छः छः माह,
पिता माता को देखेंगे हम,
माता-पिता ईश्वर को भी,
दो हिस्सों में बांटा है ।
आम अमरूद इमली जामुन,
फल खाए थे बचपन में,
बडे हुए तो भूल गए और,
उन पेडों को भी बांटा है ।
मेघ न जानें कम-ज्यादा,
करते वर्षा उदार होकर,
मिलनेवाले उस जल को भी,
मनुज मनुज ने बांटा है ।
सांसें लेते थे स्वच्छ हवा में,
उसमें भी अब जहर घुला,
सांसें लेते थे स्वच्छ हवा में,
उसमें भी अब जहर घुला,
अब तो दम भी घुटने लगा,
हवा का रुख भी बांटा है ।
मत पूछो,
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khud ko itna kam hi gauranvit samjha jeevan men ...bahut shukriya or aap se aasha hamehsna ki aashirwad bana rahe aese hi !
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