September 28, 2013

मत पूछो

मत पूछो,
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सौजन्य और © भानुश्री पानेरी

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मत पूछो इस दुनिया में,
किसने क्या-क्या बांटा है,
किसने मंदिर मस्जिद में,
ऊपरवाले को बांटा है ।
जाने क्यूं और किस हक से
टुकडे कर देश को बांटा है ।
ये तेरा ये मेरा ये है उसका,
अपने लालच या फ़िर डर से,
हमने सब कुछ बांटा है ।
जिस आंगन खेले दो भाई,
गुल्ली-डंडा, बचपन में,
दीवार खडी है उस आंगन,
जाने कब किसने बांटा है ।
साल के बांटे छः छः माह,
पिता माता को देखेंगे हम,
माता-पिता ईश्वर को भी,
दो हिस्सों में बांटा है ।
आम अमरूद इमली जामुन,
फल खाए थे बचपन में,
बडे हुए तो भूल गए और,
उन पेडों को भी बांटा है ।
मेघ न जानें कम-ज्यादा,
करते वर्षा उदार होकर,
मिलनेवाले उस जल को भी,
मनुज मनुज ने बांटा है ।
सांसें लेते थे स्वच्छ हवा में,
उसमें भी अब जहर घुला,
अब तो दम भी घुटने लगा,
हवा का रुख भी बांटा है ।
मत पूछो, 
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1 comment:

  1. khud ko itna kam hi gauranvit samjha jeevan men ...bahut shukriya or aap se aasha hamehsna ki aashirwad bana rahe aese hi !

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