~~~~~~ अगले मौसम में ~~~~~~~~
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मौसम के अनुकूल होते ही,
धरती में दबा बीज,
जैसे कुनमुना कर जाग उठता है,
और एक नाजु़क कोमल अंकुर,
देखने लगता है सृष्टि को,
अपनी शिशु-दृष्टि से,
पहली-पहली बार !
होता है अपनी सुंदरता में वैसा ही परिपूर्ण,
जैसा होता है,
बाद में विकसित और पल्लवित-पुष्पित होकर,
किसी अगले मौसम में ।
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July 20, 2010
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कितनी सुन्दर रचना ! कोमल भाव ...अंकुर का सृष्टि को निरखना और उससे तादात्म्य ..! बेहद सुखद ..
ReplyDeleteधन्यवाद अपर्णाजी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! आभार.
ReplyDeleteRegards and Thanks,
ReplyDeleteP.N.Subrahmanian Sir!