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रोज के अपने नियत भ्रमण के लिए,
शाम को थककर मैं,
निकला घर से .
उमस और गर्मी से बेहाल !
पसीने से तर- बतर,व्याकुल बाहर-भीतर,
उस मोड़ पर जैसे ही पहुँचा,
जहाँ अचानक सड़क एक खुली जगह में निकलती है,
और दायें-बाएँ,
बहुत चौड़े रास्तों पर मुड़ जाती है,
वह दौड़ती हुई आकर मुझसे गले लग गयी .
मैंने भी बाँहें फैलाकर,
स्वागत किया उसका,
और एक मृदु आलिंगन में समेट लिया उसे .
उसके दाँए कंधे पर था मेरा बाँया हाथ,
और दाँया,
उसकी पीठ पर से होकर,
उसकी कमर के दाँए,
ज़रा ऊपर .
वह मेरी बेटी, बहन, माँ,
प्रियतमा, या दोस्त भी हो सकती थी.
मिनट भर के लिए मेरी आँखें मुंदी की मुंदी रह गयी,
वह सहलाती रही,
-मेरा बदन !
और जब तक साँस में साँस आई,
वह जा चुकी थी, अपना सुखद,
अमृत-स्पर्श देकर !
ले गयी मेरी क्लान्ति, व्याकुलता,
- और स्वेद भी !
कौन थी वह ?
अरे भाई,
गलत मत समझो,
--वह थी शाम की प्यारी, चंचल ,....
--
--हवा !
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