--------हरित-ऋतु--------
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आखिर कितने दिनों तक यूँ ही,
बैठे रहें पुरानी बातें लेकर ?
हमे ही शुरू करना होगा,
अपना नया जीवन,
-नये सिरे से !
पुरानी मटमैली दीवारों को,
-देने होंगे नए रंग ।
लयतालहीन पुराने शिथिल गीत में,
''स्वर नहीं रहे !''
-कब तक करते रहें ऐसी शिकायत?
हमें ही देने होंगे उसे,
-स्वर नए रसीले !
तितली के नाज़ुक परों मे,
खोजने होंगे नए रंग,
-हमे ।
और उतारनी होगी मोगरे की भीनी महक,
-अपने जीवन में,
-हमें ही !
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*A comment I made, on a post of Ravindra Koshthi,
on face-book, On 17-06-2010.
Titled : rutu hirwa,
(it is information about a marathi poem,composed
by his daughter Jivanika koshti, and I translated the
same into Hindi. Credits go to Jivanika, for her this
nice poem).
same into Hindi. Credits go to Jivanika, for her this
nice poem).
विनयजी! आपका बहुत बहुत धन्यवाद. और हा आपने मराठी से हिंदी में बहुत ही सुन्दर अनुवाद किया है. बधाई हो.
ReplyDeleteवाह !कितनी मनभावन कविता
ReplyDeleteरचनाजी,
ReplyDeleteहरित-ऋतु शीर्षक से प्रकाशित जीवनिका कोष्टी की मूल
मराठी कविता के मेरे द्वारा किए गए हिन्दी रूपान्तर को
पढ़ने और टिप्पणी लिखने के लिए धन्यवाद ।
सादर,
-विनय
हाँ ,हमें ही
ReplyDeleteवाह पारूल !
ReplyDeleteआपकी एक टिप्पणी से इस कविता के सौन्दर्य
और अर्थपूर्णता में निखार आ गया ।
आभार और धन्यवाद !!