न भूतो न भविष्यति
08-01-2025
लगता है यह सब स्वप्न है।
हर एक जीवन, हर एक व्यक्ति का जीवन किसी भी और से कितना अलग और स्वतंत्र होता है! फिर भी असंख्य दूसरे व्यक्ति क्षण प्रशिक्षण उसके संपर्क में आते हैं और जाते रहते हैं! स्मृति ही संबंधों का और घटनाओं का भ्रम पैदा करती है, और स्मृतियों की श्रँखलाएँ अलग अलग समय पर अलग अलग रूपों में चेतना में प्रकट-अप्रकट, व्यक्त-अव्यक्त होते रहकर वर्तमान के रूप में दिखलाई देती हैं। जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की गई होती है, वही इस क्षण ऐसा सत्य प्रतीत होता है कि आश्चर्य होता है। सब कुछ बीत जाता है और बस कुछ आनी गिनी स्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं। स्वयं के अलावा दूसरा कोई, कौन आपकी स्मृतियों में आपका सहभागी हो सकता है!
पिछले वर्ष 2024 के अंतिम दिन कुछ इस तरह गुजरे कि हर दिन लगता था कि क्या इस वर्ष का अंतिम दिन कभी देख भी पाऊँगा या नहीं।
और पिछले बहुत से वर्षों में ऐसा ही होता रहा। हर बार यही सोचा करता था कि यह आखिरी है।
फिर भी जीवन में निरंतरता बनी हुई है। स्मृतियों की भी और जीवन की भी। जीवन को स्मृतियों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है जिसमें समय समय पर भिन्न भिन्न लोगों से संपर्क हुआ और सब स्मृति के अलावा कहीं हैं भी या नहीं, कुछ कहना संभव ही नहीं है। तो भी उनमें से इने गिने ही अभी वर्तमान में स्मृति में हैं, जिनसे पुनः कुछ क्षणों, दिनों में मिलना हो सकता है। रोज ही ऐसे ही कुछ लोगों से मिलना होता रहता है और उनके नाम और परिचय की स्मृति उनके 'हमेशा' होने का आभास पैदा करती है। उनमें से बहुत से लोगों से मिलना और उनकी स्थिति के बारे में आगे और कुछ जान पाना तक शायद ही कभी संभव हो, लेकिन जब अचानक किसी दिन पता चलता है कि वे अब 'नहीं रहे', तो उनकी स्मृतियाँ अवश्य ही इस प्रकार जाग पड़ती हैं मानों कि वे सचमुच ही कहीं कभी 'रहे' थे।
पिछला वर्ष भी ऐसा ही एक 'व्यक्ति' था। जैसे कोई भी व्यक्ति एक 'जीवन' होता है, वैसे ही हर दिन, हर क्षण, हर वर्ष और पूरी आयु ही एक 'जीवन' ही होता है, जो केवल स्मृति में ही अस्तित्वमान होता है, स्मृति के आते ही अस्तित्व ग्रहण कर लेता है और स्मृति के विलीन होते ही अस्तित्वहीन भी हो जाता है।
शरीर और विभिन्न परिस्थितियाँ और जीवन एक साथ कैसे बीतते हैं और पूरी तरह नया रूप ग्रहण कर लेते हैं! अगर स्मृति की निरंतरता न हो तो न तो जीवन की, न ही अपनी या औरों की, न समय, लोगों, और घटनाओं या अतीत की ही कोई सत्यता या निरंतरता संभव है।
और यह न सिर्फ अतीत के बारे में सत्य है, बल्कि जिस भविष्य का विचार और अनुमान किया जाता है उसका अस्तित्व भी संदिग्ध ही तो है! फिर भी कोई अनुमान या कल्पना, चिन्ता या आशंका, आशा या प्रश्न कितना ठोस सत्य प्रतीत होता है! और जब उस भविष्य, उस कल्पित समय से भी सामना होता है तो वह भी समस्त अनुमानों और कल्पनाओं से कितना अलग होता है! सब कुछ ही अप्रत्याशित। यद्यपि कुछ समानता उनमें अवश्य ही पाई भी जा सकती हैं लेकिन वह भी स्मृति का ही खेल है।
समाज, विश्व, इतिहास सब कुछ ऐसा ही है।
पता नहीं कि जीवन अचल है या कि सतत गतिशील एक निरंतरता या नित्यता है!
***