March 11, 2025

11032025 / Poetry

कौन लेता है साँस?

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अब तक कभी खयाल न था, 

दो दिनों पहले ही खयाल आया,

कौन लेता है साँस?

क्योंकि मैं तो नहीं लेता खुद!!

क्योंकि अगर मैं ही लेता,

तो भूल भी सकता था!

और अगर तय कर लेता, 

साँस को रोक भी नहीं सकता, 

इसलिए कोई और ही है जो, 

साँस लेता है, या नहीं लेता, 

वो मन या शरीर भी नहीं,

प्राण या संकल्प भी नहीं, 

इच्छा, भय या चिन्ता भी नहीं,

हाँ वही है यह तो कोई,

जो मेरे जागने सोने में,

जीने मरने, हँसने रोने में,

कुछ भी होने,  न-होने में, 

जो साँस लेता है, या नहीं लेता, 

हाँ जब वह साँस नहीं लेता, 

मुझको पता तो जरूर चलता है,

और फिर चाहकर भी मैं,

साँस को शुरू भी नहीं कर सकता!

तय है वही है, जो लेता है, 

या वही है, जो नहीं लेता, 

जिससे जीवन ही है यह,

जिससे ही शरीर भी है,

जिससे ही मन प्राण भी हैं,

जिससे इच्छा, भय संकल्प भी हैं,

जिससे संसार भी है, 

जिससे यह "जानना" भी है,

और यह "न-जानना" भी है!

और यह प्रश्न, जिज्ञासा भी है, 

कौन लेता है साँस, 

क्योंकि मैं तो नहीं लेता खुद! 

वह जो साँस लिया करता है,

या कभी कभी नहीं भी लेता, 

वह मैं तो नहीं हो सकता, 

तो वही तो कहीं ईश्वर ही नहीं?

और मैं उसको भूलकर खुद को, 

समझा करता था कि मैं ही हूँ,

जो साँस लेता है या नहीं लेता!

***


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