June 17, 2023

सबसे अद्भुत् वस्तु

Question / प्रश्न 27

संसार की सबसे अद्भुत् वस्तु क्या है?

Answer / उत्तर  :

संसार की सबसे अद्भुत् वस्तु है : "मन"

क्योंकि संसार और मैं, -इस मन का ही विस्तार हैं। और मन फिर भी एक ही साथ दोनों ही से भिन्न और अभिन्न भी होता है। मन और संसार परस्पर आश्रित हैं, और एक के बिना दूसरा नहीं हो सकता। और "मैं" संसार और मन की संतान है। मन और संसार दोनों, हमेशा ही बदलते रहते हैं, जबकि "मैं" कभी नाम-मात्र के लिए भी नहीं बदलता। जब मन "मैं" होता है तो अनेक जड और चेतन वस्तुओं के माध्यम से स्वयं को उन सभी से अलग और बिलकुल अकेला पाता है। तब यही मन चेतन के रूप में जड को "अनेक" और स्वयं को एकमात्र "मैं" मान लेता है। जड को जाननेवाला यही मन किसी भी जड-शरीर में व्यक्त, इस तरह से उससे संबद्ध भी होता है, कि एक ही साथ ही उससे भिन्न और अभिन्न भी होता है। और उसी शरीर में बुद्धि का उन्मेष होने से मूलतः एकमेव वस्तु से बना हुआ जगत, संसार और शरीर इन दो में बँटा हुआ प्रतीत होता है। तब मन में स्थित "मैं" संसार की तुलना में स्थायी है, ऐसा बुद्धि में ही जाना और माना जाता है। और यह मन, बुद्धि का ही सहारा लेकर, बुद्धि के द्वारा किए जानेवाले कार्यों को स्वयं के द्वारा किया जाता है, इस मान्यता से ग्रस्त हो जाया करता है। विभिन्न अनुभवों में अपने को अनुभवकर्ता, सुख-दुःख आदि प्रिय-अप्रिय भोगों में अपने आपको भोक्ता, स्मृति में एकत्र / संचित जानकारी से स्वयं को ज्ञाता तथा उससे संबद्ध, और उसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न वस्तुओं से स्वयं को जोड़कर यह उनका स्वामी होने की कल्पना से अभिभूत हो जाता है। यही मन चेतना से युक्त होने पर अपने आपको संपूर्ण जगत् का सृष्टिकर्ता, संचालनकर्ता और संहारकर्ता होने की भावना से जगत् का एकमात्र ईश्वर भी मान लेता है। या ऐसे किसी ईश्वर को अपने से भिन्न, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, और सर्वशक्तिमान भी। 

इसीलिए संसार और "मैं" मन का ही विस्तार हैं।

जब यह संसार या / और स्वयं से ऊब जाता है, तो संसार या / और स्वयं अपने आपको "बदल देने" के कार्य के विसंगत, भ्रामक, और मिथ्या विचार को महत्वपूर्ण मान बैठता है, जबकि तर्क और अनुभव की दृष्टि से भी यह विचार नितान्त त्रुटिपूर्ण है। मान लें कि यदि कोई अपने आपको बदल सकता है, तो उसे यह  कैसे पता लेगा कि वह बदल गया है! अनुभव की दृष्टि से भी यह अनुभव-गम्य भी नहीं हो सकता। यह न तो बुद्धिगम्य है, न तर्क या अनुभव से ही इसकी सत्यता प्रमाणित की जा सकती है। 

किन्तु फिर भी बुद्धि के द्वारा मोहित हो जाने पर मन इन समस्त कल्पनाओं से मोहित हो जाया करता है।

जैसे अनेक जलाशयों में स्थित जल तत्वतः तो एक होता है, फिर भी एक दूसरे से भिन्न प्रतीत होता है, उसी प्रकार से वस्तुतः मन, एक और अखंड होते हुए भी हर चेतन (sentient) प्राणी के लिए ही उसका अपना ही एक अलग और स्वतंत्र 'मन' हुआ करता है।

इसीलिए यह संसार की सबसे अद्भुत् वस्तु है। 

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