February 14, 2019

सच और झूठ का फ़र्क़

आज की बात 
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"वो मूर्ख होता है जो सिर्फ़ सच को जानता है पर सच और झूठ के फ़र्क़ को नहीं जानता! ... "
अमिताभ बच्चन की किसी फिल्म का यह डॉयलॉग एक दिन पहले सुना / पढ़ा था।
हम सच को जानते हैं या किसी घटना के बारे में उस घटना की स्मृति / याददाश्त को?
और क्या स्मृति / याददाश्त कभी सच या झूठ हो सकती है?
क्या स्मृति / याददाश्त किसी घटना का केवल एक मानसिक चित्र भर नहीं होती?
या, क्या यह चित्र पत्थर या पत्थर की लक़ीर जैसी कोई ठोस चीज़ होता है?
फिर भी हमें लगता है कि हम पत्थर की लकीरों से बनी सच की कोई ऐसी मुकम्मल और ठोस तस्वीर उकेर सकते हैं जिसे सच कहा जा सके।  
और, क्या इसीलिए हम 'सच क्या है ?' इस सवाल का सामना करने से बचते नहीं रहते?
क्या सच की यह तस्वीर ही सच और झूठ का फ़र्क़ नहीं होती?
लेकिन हम शायद इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि हमें किसी फ़ौरी, तात्कालिक कामचलाऊ ऐसी तस्वीर की ज़रुरत और तलाश होती है जिसे हम सच का नाम दे सकें और इस्तेमाल कर लेने के बाद फेंक सकें !
यूज़ ऐंड थ्रो !
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