हिन्दी अनुवाद : विनय कुमार वैद्य
महासमाधि
गहन ध्यानमग्नता में मैं इस देह को त्याग देता हूँ,
शाश्वत दिवस के उजाले की निःस्तब्धता में लीन,
मेरी आत्मा परमेश्वर की महिमा में जीवंत-प्राणवान,
सभी लोकों के सौहार्द्र में सुन सकते हो इसे तुम,
मैं पुनः देह में अवतरित हो आऊँगा अपने संकल्प से,
किंतु अंततः तो रेत में खड़े महल सा ढह जाऊँगा,
और किसी दिन यह समूची धरती भी नहीं होगी,
इन विशाल महासागरों और उनके तटों के साथ,
महाशून्यता भौतिक-सृष्टि को अभिभूत कर प्रकट होगी,
और बहुत सी जीवात्माएँ संक्रमण करेंगीं परमेश्वर में!
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महासमाधि
गहन ध्यानमग्नता में मैं इस देह को त्याग देता हूँ,
शाश्वत दिवस के उजाले की निःस्तब्धता में लीन,
मेरी आत्मा परमेश्वर की महिमा में जीवंत-प्राणवान,
सभी लोकों के सौहार्द्र में सुन सकते हो इसे तुम,
मैं पुनः देह में अवतरित हो आऊँगा अपने संकल्प से,
किंतु अंततः तो रेत में खड़े महल सा ढह जाऊँगा,
और किसी दिन यह समूची धरती भी नहीं होगी,
इन विशाल महासागरों और उनके तटों के साथ,
महाशून्यता भौतिक-सृष्टि को अभिभूत कर प्रकट होगी,
और बहुत सी जीवात्माएँ संक्रमण करेंगीं परमेश्वर में!
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