कविता लिखना और पढ़ना दोनों चित्त को उत्फुल्ल कर देते हैं ।
कोई कविता किसी दूसरी से कम या अधिक भावपूर्ण हो सकती है,
भाव और अभिव्यक्ति की शैली और शब्द भी कम या अधिक सुंदर हो सकते हैं फिर भी उनमें से कौन सी श्रेष्ठ है कहना कठिन हो सकता है क्योंकि कविता मूलतः छन्द है, वेद को ’छन्द’ कहा जाता है, ईश्वर को ’कवि’ और कवि वह होता है जो अपना ’छन्द’ खोज लेता है ।
इसलिए हर कवि अपने-आपको खोजते खोजते अपना छन्द खोज लेता है, और तब उसकी कविता अवश्य ही उसके भाव / भावना का साकार रूप होती है । सवाल सिर्फ़ यह है कि वह किस बारे में कुछ कहना / लिखना चाहता है ! और जब वह ऐसा जान लेता है तो उसे इसके लिए भीतर से ही प्रेरणा भी अनायास मिल जाती है ।
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दूसरी ओर किसी दूसरे की लिखी कविता पाठक को इस हद तक भाव-विभोर कर सकती है जिसे लिखते समय कवि स्वयं भाव की उस गहराई को न छू पाया हो, अर्थात् पाठक उस गहन भाव-दशा में निमग्न हो सकता है जो वस्तुतः उसकी अपनी चित्त-दशा और मन की गहराई होती है और कवि केवल उस गहराई तक जाने के लिए उत्प्रेरक भर होता है । इसलिए कभी-कभी कविता लिखते समय कवि के मन में जिसकी कल्पना तक नहीं हुई होती, पाठक रचना में उस अर्थ का आविष्कार कर लेता है और कवि / कविता से अभिभूत हो उठता है ।
यह चमत्कार कविता का गूढ किंतु प्रकट सौन्दर्य भी है ।
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कोई कविता किसी दूसरी से कम या अधिक भावपूर्ण हो सकती है,
भाव और अभिव्यक्ति की शैली और शब्द भी कम या अधिक सुंदर हो सकते हैं फिर भी उनमें से कौन सी श्रेष्ठ है कहना कठिन हो सकता है क्योंकि कविता मूलतः छन्द है, वेद को ’छन्द’ कहा जाता है, ईश्वर को ’कवि’ और कवि वह होता है जो अपना ’छन्द’ खोज लेता है ।
इसलिए हर कवि अपने-आपको खोजते खोजते अपना छन्द खोज लेता है, और तब उसकी कविता अवश्य ही उसके भाव / भावना का साकार रूप होती है । सवाल सिर्फ़ यह है कि वह किस बारे में कुछ कहना / लिखना चाहता है ! और जब वह ऐसा जान लेता है तो उसे इसके लिए भीतर से ही प्रेरणा भी अनायास मिल जाती है ।
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दूसरी ओर किसी दूसरे की लिखी कविता पाठक को इस हद तक भाव-विभोर कर सकती है जिसे लिखते समय कवि स्वयं भाव की उस गहराई को न छू पाया हो, अर्थात् पाठक उस गहन भाव-दशा में निमग्न हो सकता है जो वस्तुतः उसकी अपनी चित्त-दशा और मन की गहराई होती है और कवि केवल उस गहराई तक जाने के लिए उत्प्रेरक भर होता है । इसलिए कभी-कभी कविता लिखते समय कवि के मन में जिसकी कल्पना तक नहीं हुई होती, पाठक रचना में उस अर्थ का आविष्कार कर लेता है और कवि / कविता से अभिभूत हो उठता है ।
यह चमत्कार कविता का गूढ किंतु प्रकट सौन्दर्य भी है ।
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