आज की कविता
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कुछ बुद्धिजीवी देखकर यह,
रह गए हैं दंग,
खरबूजा खरबूजे को देखकर क्यों,
बदलता है रंग?
कुछ खरबूजे देखकर यह,
हैं थोड़े अजूबे में,
क्या कुछ फ़र्क़ होता है,
बुद्धिजीवी और खरबूजे में !
खानेवाले के लिए होता है जैसे,
मुर्गी में या मुर्गे में,
काटनेवाले के लिए,
बकरे में या चूज़े में !
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(अपनी बात : वैसे मुझे लगता है, यह बेसिर-पैर की कविता है पढ़कर हँसा जा सकता है,
बस इतना ही फ़ायदा है इसका !)
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कुछ बुद्धिजीवी देखकर यह,
रह गए हैं दंग,
खरबूजा खरबूजे को देखकर क्यों,
बदलता है रंग?
कुछ खरबूजे देखकर यह,
हैं थोड़े अजूबे में,
क्या कुछ फ़र्क़ होता है,
बुद्धिजीवी और खरबूजे में !
खानेवाले के लिए होता है जैसे,
मुर्गी में या मुर्गे में,
काटनेवाले के लिए,
बकरे में या चूज़े में !
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(अपनी बात : वैसे मुझे लगता है, यह बेसिर-पैर की कविता है पढ़कर हँसा जा सकता है,
बस इतना ही फ़ायदा है इसका !)
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