~~~रचना/सृष्टि~~~
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ऋषि कवि हो सकता है,
और कवि, ऋषि भी !
चुनते हैं दोनों,
-’अक्षर’ को,
जो कभी मंत्र बन जाते हैं,
तो कभी ’बीजाक्षर’ भी !
यह तो ’अक्षर’ की नियति ही है,
क्योंकि दृष्टा ही तो ऋषि हो सकता है,
और ’सृजनकर्ता’ ही कवि,
लेकिन कभी कभी ’क्षर’ की नियति भी ऐसी होती है,
या कि उसका अनंत सौभाग्य,
कि उस पर पड़ जाती है दृष्टि,
दृष्टा की,
उठा लेता है कवि उसे अपनी हथेलियों में
और ऋषि फूँक देता है उसमें प्राण,
मंत्राक्षरों से !
और ’क्षर’ हो जाता है,
धन्य !
जब ’सृजनकर्ता’,’ऋषि’ और ’कवि’
उसे छू देते हैं,
हो जाता है वह,
’अक्षर’ अमर्त्य !
उनसे अनन्य !!
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जब ’सृजनकर्ता’,’ऋषि’ और ’कवि’
ReplyDeleteउसे छू देते हैं,
हो जाता है वह,
’अक्षर’ अमर्त्य !
उनसे अनन्य !.........वाह कवी की कल्पनाओं के द्वंदों को शब्द रूप में या ऋषि के उस प्रकृति में विचरण करने वाली धुनों को आपने साधनाओं से प्राप्त कर मंत्र में परिवर्तित करने का ..आप ने जबरदस्त पटापेक्स्य किया है ...बहुत ही सुन्दर विनय जी !!!!!
@ Travel Trade Service,
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार !!
सादर,
मूल्यवान शब्द संयोजन.
ReplyDeleteप्रिय राहुल सिंह जी,
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ने और अपनी मूल्यवान टिप्पणी
देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद,
सादर,