Question 41 प्रश्न ४१
How Life came into Existence?
प्रश्न : "जीवन" का उद्गम कैसे हुआ?
Answer उत्तर :
We are living in the age of expertise : दक्षता / दक्षयुग.
This is what the humans could achieve excellence through progress in the many fields of knowledge like the Mathematics, Science and the Technology.
अदिति, दक्षपुत्री भगवान् शिव की उपासना स्वामी अर्थात् पति के रूप में करती थी। तब देवताओं का जन्म नहीं हुआ था। इसलिए आधिदैविक अस्तित्व का देवलोक भी निष्प्राण और निर्जीवप्राय ही था।
(स्पष्ट है कि जन्म और मृत्यु के नियन्ता यम अर्थात् काल नामक देवता का जन्म भी तब नहीं हुआ था। अतः प्रस्तुत कथा में 'उस समय का वर्णन' केवल औपचारिक और प्रयोजनपरक है। महाकाल अर्थात् भगवान् शिव शाश्वत, सनातन और नित्य-अनित्य इन तीनों रूपों में व्यक्त और अव्यक्त हैं। व्यक्त को ही लक्षण अथवा लिङ्ग कहा जाता है। अव्यक्त तो भगवान् शिव का वह स्वरूप है जिसे कि परम धाम कहते हैं और जिसका संकेत :
आब्रह्मास्तम्बपर्यन्तः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।
से श्रीमद्भगवद्गीता में पाया जाता है।)
दक्षकन्या का योगाग्नि में प्रवेश करना और उसका शिला / शैलपुत्री के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में प्रकट (manifest) होना।
शैलपुत्री उमा का भगवान् शिव को ही स्वामी अर्थात् पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से तप करना और तब उससे पञ्चमहाभूतों का उद्भव / प्राकट्य / manifestation होना।
शैलपुत्री उमा ही जो दक्षपुत्री अदिति के रूप में इन्द्र, अग्नि, वायु, जल, आदि देवताओं की और अदिति की बहन दिति के रूप में दैत्यों की भी माता है।
उमा के रूप में तपस्या करते हुए उसने पहले अन्न को और फिर जल ग्रहण करना तक छोड़ दिया।
तब तृण के रूप में शिला से जीवन प्रकट हुआ।
इसलिए उमा का एक नाम अपर्णा हुआ। अपर्णा के द्वारा तप किए जाने पर उसे निर्जला व्रत की प्राप्ति हुई तो उसे वरदान मिला कि अब तुम्हीं गौ के रूप में प्रत्यक्ष ही जीवन होगी। गौ ने तृण का सेवन करना प्रारंभ किया।
अदिति से देवताओं में जीवन का संचार हुआ, अतः उसे देवताओं की माता या स्कन्दमाता कहा गया। वैष्णवी नाम उसे विष्णु की माता होने से मिला और ब्रह्मस्वरूपा होने से उसे ब्रह्मचारिणी की संज्ञा प्राप्त हुई।
तृण से अन्न हुआ, फिर अन्न से स्थूल भूतों का उद्भव हुआ :
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।१४।।
(अध्याय ३)
इस प्रकार "जीवन" व्यक्त रूप में प्रकट हुआ।
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