August 24, 2019

हेडलेस चिकन्स .... / Headless chickens .

एक कविता / आज की कविता
हेडलेस चिकन्स ....
(शीर्षक-रहित)
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रोजी-रोटी के लिए ज़रूरी,
सही-गलत, फिर धन्धा क्या?
सरपट दौड़े, सुस्त कभी,
तेज कभी, या मन्दा क्या?
करने की जब ठान ही ली,
अच्छा या फिर, गन्दा क्या ?
मज़बूरी के मारे हैं सब,
अल्ला क्या, और बन्दा क्या,
कभी तेज, कम रौशनी,
सूरज क्या, और चन्दा क्या ?
जब मरने की ठान ही ली,
फिर फ़ाँसी का फ़न्दा क्या ?
जिसके पर ही टूट गए,
उड़ता वह, परिन्दा क्या?
बीत गए दिन जिस डाली के,
आए वक़्त, आइन्दा क्या?
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24 अगस्त 2019,

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