ग्रंथियाँ ! / कविता
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ग्रंथियाँ गाँठ बन जाती हैं,
दिल में, ज़िस्म में रूह में भी,
दिल से ज़िस्म तक कभी,
दिल से रूह तक भी कभी,
वो जो बहा करता है दिल में,
खून सा, तो प्यार सा कभी,
एक अहसास सा ज़िस्मानी,
एक अहसास सा जो रूमानी,
एक अहसास सा जो रूहानी,
उसे बहने दो, रोको न उसे,
वर्ना बन जाया करती हैं गाँठें,
ज़िस्म में, रूह या अहसास में,
खून में, दिल में, जज़्बात में भी,
खून जम न जाए, पिघल जाए,
दिल न पत्थर हो, पिघल जाए,
गाँठ न बने उसको यूँ बहने दो,
आँसू, हँसी या कविता बनकर,
ग्रंथियाँ गाँठ, नासूर बनती हैं,
काव्य के ग्रंथ भी बनती हैं !
रस से बनने दो रसायन कोई,
रस को रसौली नहीं बनने दो,
खोल दो गाँठें सारी दिल की,
रस को स्वच्छन्द-छन्द बहने दो ।
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