आज की कविता
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खेल
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तुम्हारे चश्मे का रंग,
दूसरों के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
तुम्हारे चश्मे का रंग,
वक़्त के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
लोग बदलते रहते हैं चश्मे,
कोई भी उनकी आँखों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
कोई भी वक़्त के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
वक़्त खुद बदलता रहता है चश्मे,
कोई भी उसकी आँखों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
किसने देखा है कभी,
वक़्त की आँखों में,
आँखें डालकर?
हर रंग जुदा है,
हर रंग अजनबी भी,
मुझे अजनबी होने का,
यह खेल नहीं भाता !
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खेल
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तुम्हारे चश्मे का रंग,
दूसरों के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
तुम्हारे चश्मे का रंग,
वक़्त के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
लोग बदलते रहते हैं चश्मे,
कोई भी उनकी आँखों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
कोई भी वक़्त के चश्मों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
वक़्त खुद बदलता रहता है चश्मे,
कोई भी उसकी आँखों के रंग से,
मेल नहीं खाता,
किसने देखा है कभी,
वक़्त की आँखों में,
आँखें डालकर?
हर रंग जुदा है,
हर रंग अजनबी भी,
मुझे अजनबी होने का,
यह खेल नहीं भाता !
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देवास /०७/१२/२०१६ १०:२५ a.m.
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