आज की कविता / दीप-ज्योति
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साकार निराकार में घुलता हुआ,
निराकार साकार में खिलता हुआ,
रंग आकृतियों में पिघलता हुआ,
आकृतियाँ स्पर्श में फिसलती हुईं ।
स्पर्श सुरभि में उड़ते-उमड़ते हुए,
सुरभियाँ सुरों में उमगती-ढलती हुईं,
सुर संगीत की स्वर-तरंगों में बहते हुए,
अनुभूति से हृदय तक पहुँचते हुए,
शब्दों के दीप जलें,
ज्योति-रश्मियाँ चलें,
तमस् भ्रान्ति शोक हरें
हृदयों में प्रेम पले !
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शुभ दीवाली !
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साकार निराकार में घुलता हुआ,
निराकार साकार में खिलता हुआ,
रंग आकृतियों में पिघलता हुआ,
आकृतियाँ स्पर्श में फिसलती हुईं ।
स्पर्श सुरभि में उड़ते-उमड़ते हुए,
सुरभियाँ सुरों में उमगती-ढलती हुईं,
सुर संगीत की स्वर-तरंगों में बहते हुए,
अनुभूति से हृदय तक पहुँचते हुए,
शब्दों के दीप जलें,
ज्योति-रश्मियाँ चलें,
तमस् भ्रान्ति शोक हरें
हृदयों में प्रेम पले !
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शुभ दीवाली !
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