February 19, 2016

बुद्धिजीवी और खरबूजे

आज की कविता
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कुछ बुद्धिजीवी देखकर यह,
रह गए हैं दंग,
खरबूजा खरबूजे को देखकर क्यों,
बदलता है रंग?
कुछ खरबूजे देखकर यह,
हैं थोड़े अजूबे में,
क्या कुछ फ़र्क़ होता है,
बुद्धिजीवी और खरबूजे में !
खानेवाले के लिए होता है जैसे,
मुर्गी में या मुर्गे में,
काटनेवाले के लिए,
बकरे में या चूज़े में !
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(अपनी बात : वैसे मुझे लगता है, यह बेसिर-पैर की कविता है पढ़कर हँसा जा सकता है,
 बस इतना ही फ़ायदा है इसका !)
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February 15, 2016

आज की कविता / क़लम

आज की कविता 
क़लम
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क़लम का सर क़लम हो तो,
घिसती तो नहीं, रिसती तो है,
और बिखर जाती है बीज बनकर,
बनती है जड़ें नई, बुनियाद नये पौधों की,
खेतियाँ उग आती हैं कलमों की,
उग आती हैं तलवारें शर और तीक्ष्ण,
खड्ग शूल कृपाण कई!
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February 08, 2016

ख़बरें / नया कुछ

कोलकाता पुस्तक-मेला :
(सौजन्य : डॉ कविता वाचक्नवी)
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पठितव्यम् , अवलोकनीयम् .. 
शुभकामनाएँ
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