आज की कविता
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© विनय वैद्य / 25/12/2015.
मेहमान
दर्द मेहमाँ था मेरा चन्द रोज़,
जैसे आया था, लौटा वापिस भी,
किसी शरीफ़ से मेहमाँ जैसा,
और अब याद उसकी है मेहमाँ !
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इतनी ठंड में ....
कोयले से आग लिखो,
आग से लिखो उम्मीद,
और उम्मीद से लिखो मेहनत,
फ़िर लिखो मेहनत से तक़दीर अपनी ।
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© विनय वैद्य / 25/12/2015.
मेहमान
दर्द मेहमाँ था मेरा चन्द रोज़,
जैसे आया था, लौटा वापिस भी,
किसी शरीफ़ से मेहमाँ जैसा,
और अब याद उसकी है मेहमाँ !
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इतनी ठंड में ....
कोयले से आग लिखो,
आग से लिखो उम्मीद,
और उम्मीद से लिखो मेहनत,
फ़िर लिखो मेहनत से तक़दीर अपनी ।
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