कल का सपना : ध्वंस का उल्लास -16
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सन्दर्भ : 'नईदुनिया', इंदौर, सोमवार 18 अगस्त 2014, पृष्ठ 11
* ये बातें पाकिस्तान जाकर मुंबई हमले के आरोपी हाफिज सईद मिलने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने रविवार को इंदौर के आनंद मोहन माथुर सभागार में नईदुनिया की शृंखला 'संवाद' में बतौर मुख्य अतिथि कही ।
वह नहीं जानता जेहाद-ए-अकबर
*उन्होंने बताया कि मैंने हाफिज सईद से कहा कि यह कैसा जेहाद है? मुंबई में बेकसूर लोगों को क्यों मारा ? कौन से इस्लाम में लिखा है कि बेकसूर लोगों को मारो? पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहाँ कहा है कि बेकसूरों पर गोली चलाओ, कौन सी हदीस ने कहा है कि यह एक जेहाद है। यह सुनकर वह सकते में आ गया। फिर मैंने उससे पूछा 'जेहाद-ए-अकबर' जानते हो, उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा तो मैंने उसे बताया कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ को कम करना और जितेन्द्रिय बनना 'जेहाद-ए-अकबर' है । इसमें हिंसा और पशुत्व की जगह कहाँ है?
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'जेहाद-ए-अकबर' के बारे में तो मैं भी कुछ नहीं जानता, हाँ मैं यह देखकर चकित अवश्य हुआ कि
गीता तथा संस्कृत भाषा में 'जहाति' 'प्रजहाति' शब्द का प्रयोग 'छोड़ने' के अर्थ में, और 'नष्ट करने' के अर्थ में,
तथा,
जहत् अजहत् एवं जहत्-अजहत् लक्षणाओं में प्रचुरता से पाया जाता है ।
मैं नहीं कह सकता कि इस्लाम या अरबी भाषा में इस शब्द का क्या अर्थ होता है, किन्तु डॉ. वेदप्रताप वैदिक के इस विचार से मैं पूर्णतः सहमत हूँ कि 'जेहाद' का वास्तविक अर्थ, निरपराध / बेकसूर लोगोँ को मारना नहीं, बल्कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ को कम करना और जितेन्द्रिय बनना अवश्य हो सकता है ।
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राजनीति में न मेरी रुचि है, न दखल, न क़द्र। लेकिन ब्लॉग लिखने के लिए मुझे अवश्य एक थीम मिली !
थैंक्स डॉ. वैदिक, हाफिज सईद, नईदुनिया !
यहाँ संक्षेप में उस थीम के बारे में उसकी आउटलाइन :
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शब्द-सन्दर्भ, ’जहाति’ / ’jahāti’
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संस्कृत भाषा में ’हा’ धातु का प्रयोग प्रधानतः ’त्यागने’ / ’छोड़ने’ और गौणतः ’नष्ट करने’ / ’मारने’ के अर्थ में पाया जाता है ।
’हा’ जुहोत्यादि गण में परस्मैपदी धातु का स्थान रखती है ।
इससे व्युत्पन्न कुछ मुख्य शब्द इस प्रकार से हैं :
जहाति - त्यागता है, छोड़ता है, प्रजहाति,
जहि - छोड़ो, नष्ट करो, मिटाओ, दूर करो, मार डालो, प्रजहि,
हास्यति - छोड़ देगा, प्रहास्यति,
हास्यसि - तुम छोड़ दोगे, प्रहास्यसि,
जहातु - (वह) छोड़ दे, त्याग दे, उसके द्वारा छोड़ दिया जाना चाहिए, उसने त्याग देना चाहिए,
हीयते - जिसे त्याग दिया जाना चाहिये,
हेयः - तिरस्कृत्य, अस्वीकार्य,
हीनः - से रहित, विना, के बिना,
जहत् - त्यागता हुआ, त्यागते हुए, (शानच् प्रत्यय),
अजहत् - न त्यागता हुआ,
हित्वा - छोड़कर, त्यागकर,
विहाय - छोड़कर, त्यागकर,
हापयति - छुड़ाता है,
जिहासति - छोड़ने की इच्छा रखता है,
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अध्याय 2, श्लोक 22, ’विहाय’ -छोड़कर,
अध्याय 2, श्लोक 33, ’हित्वा’ - नाश करते हुए,
अध्याय 2, श्लोक 50, ’जहाति’ - छोड़ देता है, से मुक्त हो जाता है,
अध्याय 2, श्लोक 55, ’प्रजहाति’ - त्याग देता है,
अध्याय 2, श्लोक 71 - ’विहाय’ - त्याग कर, त्यागने से,
अध्याय 3, श्लोक 41, - ’प्रजहि’ - नष्ट कर दो, मिटा दो, समाप्त कर दो,
अध्याय 3, श्लोक 43, - ’जहि’ - (कामरूपी शत्रु को) मार डालो,
अध्याय 11, श्लोक 34, - ’जहि’ - मारो, वध करो, यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने जिस सन्दर्भ में अर्जुन को शत्रु को मारने का निर्देश दिया है वह आश्चर्यजनक है । श्रीकृष्ण भलीभाँति जानते हैं कि अर्जुन अपने स्वजनों को कैसे मार सकता है? वह अत्यन्त व्यथित है, वे उससे कहते हैं कि तुम व्यथित मत होओ क्योंकि वे पहले ही से मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं ।
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सन्दर्भ : 'नईदुनिया', इंदौर, सोमवार 18 अगस्त 2014, पृष्ठ 11
* ये बातें पाकिस्तान जाकर मुंबई हमले के आरोपी हाफिज सईद मिलने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने रविवार को इंदौर के आनंद मोहन माथुर सभागार में नईदुनिया की शृंखला 'संवाद' में बतौर मुख्य अतिथि कही ।
वह नहीं जानता जेहाद-ए-अकबर
*उन्होंने बताया कि मैंने हाफिज सईद से कहा कि यह कैसा जेहाद है? मुंबई में बेकसूर लोगों को क्यों मारा ? कौन से इस्लाम में लिखा है कि बेकसूर लोगों को मारो? पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहाँ कहा है कि बेकसूरों पर गोली चलाओ, कौन सी हदीस ने कहा है कि यह एक जेहाद है। यह सुनकर वह सकते में आ गया। फिर मैंने उससे पूछा 'जेहाद-ए-अकबर' जानते हो, उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा तो मैंने उसे बताया कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ को कम करना और जितेन्द्रिय बनना 'जेहाद-ए-अकबर' है । इसमें हिंसा और पशुत्व की जगह कहाँ है?
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'जेहाद-ए-अकबर' के बारे में तो मैं भी कुछ नहीं जानता, हाँ मैं यह देखकर चकित अवश्य हुआ कि
गीता तथा संस्कृत भाषा में 'जहाति' 'प्रजहाति' शब्द का प्रयोग 'छोड़ने' के अर्थ में, और 'नष्ट करने' के अर्थ में,
तथा,
जहत् अजहत् एवं जहत्-अजहत् लक्षणाओं में प्रचुरता से पाया जाता है ।
मैं नहीं कह सकता कि इस्लाम या अरबी भाषा में इस शब्द का क्या अर्थ होता है, किन्तु डॉ. वेदप्रताप वैदिक के इस विचार से मैं पूर्णतः सहमत हूँ कि 'जेहाद' का वास्तविक अर्थ, निरपराध / बेकसूर लोगोँ को मारना नहीं, बल्कि काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ को कम करना और जितेन्द्रिय बनना अवश्य हो सकता है ।
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राजनीति में न मेरी रुचि है, न दखल, न क़द्र। लेकिन ब्लॉग लिखने के लिए मुझे अवश्य एक थीम मिली !
थैंक्स डॉ. वैदिक, हाफिज सईद, नईदुनिया !
यहाँ संक्षेप में उस थीम के बारे में उसकी आउटलाइन :
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शब्द-सन्दर्भ, ’जहाति’ / ’jahāti’
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संस्कृत भाषा में ’हा’ धातु का प्रयोग प्रधानतः ’त्यागने’ / ’छोड़ने’ और गौणतः ’नष्ट करने’ / ’मारने’ के अर्थ में पाया जाता है ।
’हा’ जुहोत्यादि गण में परस्मैपदी धातु का स्थान रखती है ।
इससे व्युत्पन्न कुछ मुख्य शब्द इस प्रकार से हैं :
जहाति - त्यागता है, छोड़ता है, प्रजहाति,
जहि - छोड़ो, नष्ट करो, मिटाओ, दूर करो, मार डालो, प्रजहि,
हास्यति - छोड़ देगा, प्रहास्यति,
हास्यसि - तुम छोड़ दोगे, प्रहास्यसि,
जहातु - (वह) छोड़ दे, त्याग दे, उसके द्वारा छोड़ दिया जाना चाहिए, उसने त्याग देना चाहिए,
हीयते - जिसे त्याग दिया जाना चाहिये,
हेयः - तिरस्कृत्य, अस्वीकार्य,
हीनः - से रहित, विना, के बिना,
जहत् - त्यागता हुआ, त्यागते हुए, (शानच् प्रत्यय),
अजहत् - न त्यागता हुआ,
हित्वा - छोड़कर, त्यागकर,
विहाय - छोड़कर, त्यागकर,
हापयति - छुड़ाता है,
जिहासति - छोड़ने की इच्छा रखता है,
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अध्याय 2, श्लोक 22, ’विहाय’ -छोड़कर,
अध्याय 2, श्लोक 33, ’हित्वा’ - नाश करते हुए,
अध्याय 2, श्लोक 50, ’जहाति’ - छोड़ देता है, से मुक्त हो जाता है,
अध्याय 2, श्लोक 55, ’प्रजहाति’ - त्याग देता है,
अध्याय 2, श्लोक 71 - ’विहाय’ - त्याग कर, त्यागने से,
अध्याय 3, श्लोक 41, - ’प्रजहि’ - नष्ट कर दो, मिटा दो, समाप्त कर दो,
अध्याय 3, श्लोक 43, - ’जहि’ - (कामरूपी शत्रु को) मार डालो,
अध्याय 11, श्लोक 34, - ’जहि’ - मारो, वध करो, यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने जिस सन्दर्भ में अर्जुन को शत्रु को मारने का निर्देश दिया है वह आश्चर्यजनक है । श्रीकृष्ण भलीभाँति जानते हैं कि अर्जुन अपने स्वजनों को कैसे मार सकता है? वह अत्यन्त व्यथित है, वे उससे कहते हैं कि तुम व्यथित मत होओ क्योंकि वे पहले ही से मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं ।
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