August 15, 2014

कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 13

कल का सपना : ध्वंस का उल्लास - 13
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गीता - सन्दर्भ  लगभग पूरा हो चला है।  जब शुरू किया था तो ख्याल नहीं था कि इसे कैसे लिखना है ! फिर एक दिन वह भी आया जब सोच रहा था कि शायद ही आगे और लिख पाऊँगा, लेकिन उस दिन सुबह के वक़्त अश्वत्थ के समीप पहुँचा तो उसने पूछा :
"आजकल silent dialogues     नहीं लिख रहे?"
मैंने कुछ अचरज से उसे देखा ।
"नहीं, …"
"फ़िर मेरे बारे में गीता वाले ब्लॉग में लिख सकते हो !… "
"यह प्रश्न है या सलाह ?"
मैंने परिहास किया।
"न प्रश्न, न सलाह, बस एक अनुरोध भर है !"
मैं सोच में पड़ गया।
"लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा कैसे लिखूँ , क्या लिखूँ ?"
"तुम अंत से शुरू करो। "
"मतलब?"
वह इस बीच डिसकनेक्ट हो चुका था।
सुबह का भ्रमण कर लौटा तो देवी अथर्व का पाठ करते हुए एक बीजाक्षर चित्त में अंकुरित हो उठा ।
थोड़ी देर बाद ब्लॉग देख रहा था तो वही बीजाक्षर पुनः चित्त में लहलहा रहा था।  एक अद्भुत उल्लास में विभोर यूँ ही गीता के पन्ने पलटने लगा तो वही बीजाक्षर वहाँ प्रत्यक्ष साक्षात् दर्शन दे रहा था।
दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुका कर मैंने प्रणाम किया और गीता बंद करने लगा।  अंतिम पृष्ठ पर पुनः जब उसके ही दर्शन हुए तो मैंने पुनः प्रणाम किया और अपने दूसरे कामों में व्यस्त हो गया।
उसी दिन शाम के भ्रमण के समय अश्वत्थ को देखते हुए मन ही मन मैं उसी बीजाक्षर का ध्यान  कर रहा था कि सोचा अब मैं इसी से गीता की नई पोस्ट्स लिखूँगा।
तब (18 जनवरी 2014) से गीता-सन्दर्भ के ब्लॉग्स सुचारु रूपेण लिखता चला गया हूँ।
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इस बीच दिल्ली में सत्ता सूत्र दूसरे हाथों में चले गए।
आज  twitter पर नरेंद्र मोदी के लाल किले पर दिए गए स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के बारे में लिखे  tweets पर ध्यान गया तो computer बंद कर ट्रांज़िस्टर पर उसे सुनता  रहा।
मुझे लगा कि अब हमने ऐसा प्रधानमंत्री पाया है, जो dreamer नहीं visionary है और जिससे बहुत उम्मीदें की जा सकती हैं।
मुझे मई 2014 लिखी मेरी वो पोस्ट्स भी याद आईं जिनमें मैंने उनका ज़िक्र किया था और स्वामी विवेकानंद से उनकी तुलना की थी, सिर्फ़ मनोरंजन की दृष्टि से।
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ध्वंस का उल्लास जारी है।
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