April 22, 2014
April 18, 2014
इन दिनों -18/04/2014
इन दिनों -18 /04 /2014
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© विनय कुमार वैद्य
April is the cruel month .... !
--
मेरे लिए वाक़ई यह सच है ।
जब आप युद्ध से पलायन कर रहे होते हैं तो यह भी युद्ध का ही हिस्सा होता है । लेकिन युद्ध अगर आप पर थोपा गया हो तो आप क्या कर सकते हैं?
तानाशाह हर कोई होता है । फ़र्क बस इतना है कुछ लोग अधिक चालाक होते हैं कुछ कम चालाक होते हैं ।
आक्रान्ता सोचता है कि वह जीत जाएगा, लेकिन सच यह है कि वक़्त के अलावा कोई कभी नहीं जीतता ।
छद्म युद्ध और प्रच्छन्न योद्धा !
--
हर तरफ धुन्ध है और धुन्ध से कुछ आकृतियाँ उभरती हैं । चट्टान से उकेरी प्रतिमाओं जैसी सख़्त । जो न टूटती हैं न पिघलती हैं, मैं अपना C 1- 01 लिए आसमान में पल पल बदलती उन चट्टानों को कैमरे में क़ैद कर लेता हूँ । और भूल जाता हूँ कि मैं खुद भी धुन्ध से उभरी एक प्रतिमा हूँ ।
एक सतत युद्ध जारी है ।
--
छद्म युद्ध और प्रच्छन्न योद्धा !
--
कृपया इसे यहाँ देखें !
--
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© विनय कुमार वैद्य
April is the cruel month .... !
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मेरे लिए वाक़ई यह सच है ।
जब आप युद्ध से पलायन कर रहे होते हैं तो यह भी युद्ध का ही हिस्सा होता है । लेकिन युद्ध अगर आप पर थोपा गया हो तो आप क्या कर सकते हैं?
तानाशाह हर कोई होता है । फ़र्क बस इतना है कुछ लोग अधिक चालाक होते हैं कुछ कम चालाक होते हैं ।
आक्रान्ता सोचता है कि वह जीत जाएगा, लेकिन सच यह है कि वक़्त के अलावा कोई कभी नहीं जीतता ।
छद्म युद्ध और प्रच्छन्न योद्धा !
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हर तरफ धुन्ध है और धुन्ध से कुछ आकृतियाँ उभरती हैं । चट्टान से उकेरी प्रतिमाओं जैसी सख़्त । जो न टूटती हैं न पिघलती हैं, मैं अपना C 1- 01 लिए आसमान में पल पल बदलती उन चट्टानों को कैमरे में क़ैद कर लेता हूँ । और भूल जाता हूँ कि मैं खुद भी धुन्ध से उभरी एक प्रतिमा हूँ ।
एक सतत युद्ध जारी है ।
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छद्म युद्ध और प्रच्छन्न योद्धा !
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कृपया इसे यहाँ देखें !
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April 10, 2014
ख़ामख़याली / आजकल / 10 /04 /2014 ,
ख़ामख़याली / आजकल / 10 /04 /2014 ,
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उसने एक सपना देखा । मुझसे पूछा कि उसके सपने की व्याख्या करूँ । उसे पता है कि मैं उसके सपनों की (उसके शब्दों में -) अद्भुत व्याख्याएँ करता हूँ । एक स्वप्न । वह वहाँ है, मंगलनाथ के आसपास क्षिप्रा तट पर । जहाँ कोई स्वर उसे सुनाई देता है :
"यो वै रुद्रो स भगवान् याश्चापस्तस्मै वै नमो नमः ।"
मुझे उसके स्वप्न के बारे में बस इतना पता है कि शिव-अथर्व-शीर्षम् उसका प्रिय स्तवन है, और यह पंक्ति उसी स्तवन का 18 वाँ मंत्र है । उसके स्वप्न के विवरण में अन्य बातों के आधार पर मैं उसकी तसल्ली के लिए - मुझे जैसी उचित जान पड़ती है, वैसी व्याख्या उसे कह देता हूँ । फिर मुझे याद आता है कि उसने उसके स्वप्न में वातावरण के नम और आर्द्र होने तथा चारों ओर जल के विस्तार (बाढ़) का उल्लेख किया था । उसने वहाँ पर एक या दो बैल भी देखे, जिनमें से एक उसे पीठ पर बिठाकर वापस उसके घर छोड़ आया था ।
'आपः' से मुझे आप नाम के राजनीतिक दल की याद आई । अरविन्द केजरीवाल की पार्टी की । मुझे व्यक्तिगत रूप से किसी राजनीतिक दल या राजनीति में क़तई रुचि नहीं है । किन्तु 'आप:' अर्थात् जल से उस स्वप्न का संबंध साफ़ नज़र आ रहा था ।
--
उसके जाने के बाद पंचांग खोलकर देखता हूँ तो पता चला कि 'प्लवंग' नामक संवत्सर इसी चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ हुआ है । जिसका अर्थ है : प्लवम् + गम् , अर्थात् 'बाढ़' की ओर जाने / ले जाने वाला । तात्पर्य यह कि इसे अगर 'क्ल्यू' मानें तो इस लोकसभा चुनाव में 'आप' के भारी बहुमत से विजयी होने की संभावना है, ऐसा कहा जा सकता है । अभी 'प्लवंग' के आगमन से पूर्व 'पराभव' नामक संवत्सर चल रहा था । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष जो था, उसका पराभव / हार होना है ।
लेकिन प्रधानमंत्री कौन होगा ? अरविन्द केजरीवाल की संभावना इसलिए कम है क्योंकि बाढ़ के पानी में 'अरविन्द' (कमल) नहीं खिलते । और इसी कसौटी पर भाजपा की सरकार (कमल) की विजय भी संदिग्ध जान पड़ती है । इसलिए मुझे लगता है कि कोई तीसरा ही 'प्रधानमंत्री' होगा ।
--
कृपया ध्यान दें -
उपरोक्त पोस्ट सिर्फ शुद्ध मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गई है, और इसे केवल उसी भावना से पढ़ा जाए ।
--
और 'सिस्टम' ऑफ़ करते करते ख्याल आया कि उसके स्वप्न में 'नमो' का भी तो स्पष्ट उल्लेख / संकेत था ! क्या इसका अर्थ यह किया जाए कि भाजपा की overwhelming जीत होगी ? या यह कि भाजपा (नमो) 'आप' की सहायता से सरकार बनाएँगे ? अनुमान है बस,
आगे-आगे देखिए होता है क्या !
ख़ामख़याली
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उसने एक सपना देखा । मुझसे पूछा कि उसके सपने की व्याख्या करूँ । उसे पता है कि मैं उसके सपनों की (उसके शब्दों में -) अद्भुत व्याख्याएँ करता हूँ । एक स्वप्न । वह वहाँ है, मंगलनाथ के आसपास क्षिप्रा तट पर । जहाँ कोई स्वर उसे सुनाई देता है :
"यो वै रुद्रो स भगवान् याश्चापस्तस्मै वै नमो नमः ।"
मुझे उसके स्वप्न के बारे में बस इतना पता है कि शिव-अथर्व-शीर्षम् उसका प्रिय स्तवन है, और यह पंक्ति उसी स्तवन का 18 वाँ मंत्र है । उसके स्वप्न के विवरण में अन्य बातों के आधार पर मैं उसकी तसल्ली के लिए - मुझे जैसी उचित जान पड़ती है, वैसी व्याख्या उसे कह देता हूँ । फिर मुझे याद आता है कि उसने उसके स्वप्न में वातावरण के नम और आर्द्र होने तथा चारों ओर जल के विस्तार (बाढ़) का उल्लेख किया था । उसने वहाँ पर एक या दो बैल भी देखे, जिनमें से एक उसे पीठ पर बिठाकर वापस उसके घर छोड़ आया था ।
'आपः' से मुझे आप नाम के राजनीतिक दल की याद आई । अरविन्द केजरीवाल की पार्टी की । मुझे व्यक्तिगत रूप से किसी राजनीतिक दल या राजनीति में क़तई रुचि नहीं है । किन्तु 'आप:' अर्थात् जल से उस स्वप्न का संबंध साफ़ नज़र आ रहा था ।
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उसके जाने के बाद पंचांग खोलकर देखता हूँ तो पता चला कि 'प्लवंग' नामक संवत्सर इसी चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ हुआ है । जिसका अर्थ है : प्लवम् + गम् , अर्थात् 'बाढ़' की ओर जाने / ले जाने वाला । तात्पर्य यह कि इसे अगर 'क्ल्यू' मानें तो इस लोकसभा चुनाव में 'आप' के भारी बहुमत से विजयी होने की संभावना है, ऐसा कहा जा सकता है । अभी 'प्लवंग' के आगमन से पूर्व 'पराभव' नामक संवत्सर चल रहा था । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष जो था, उसका पराभव / हार होना है ।
लेकिन प्रधानमंत्री कौन होगा ? अरविन्द केजरीवाल की संभावना इसलिए कम है क्योंकि बाढ़ के पानी में 'अरविन्द' (कमल) नहीं खिलते । और इसी कसौटी पर भाजपा की सरकार (कमल) की विजय भी संदिग्ध जान पड़ती है । इसलिए मुझे लगता है कि कोई तीसरा ही 'प्रधानमंत्री' होगा ।
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कृपया ध्यान दें -
उपरोक्त पोस्ट सिर्फ शुद्ध मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गई है, और इसे केवल उसी भावना से पढ़ा जाए ।
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और 'सिस्टम' ऑफ़ करते करते ख्याल आया कि उसके स्वप्न में 'नमो' का भी तो स्पष्ट उल्लेख / संकेत था ! क्या इसका अर्थ यह किया जाए कि भाजपा की overwhelming जीत होगी ? या यह कि भाजपा (नमो) 'आप' की सहायता से सरकार बनाएँगे ? अनुमान है बस,
आगे-आगे देखिए होता है क्या !
ख़ामख़याली
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April 06, 2014
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असली नाम /आजकल / 09/03/2014
उपन्यास-अंश
____________
"फिर क्या है असली नाम तुम्हारा?"
मैंने उसे चिकोटी काटी ।
"वेल, क्या किसी का कोई असली या नकली नाम वाकई वह खुद होता है?"
"हाँ, तुम कह तो सही ही रही हो!"
फिर हम दूसरी बातें करने लगे होंगे ।
उसे ड्रीम्स में दिलचस्पी थी । उसे रहस्यवाद में दिलचस्पी थी उसे रहस्यवादियों में दिलचस्पी थी । लेकिन इस सब से गुज़रती हुई वह 'सत्य', 'असत्य', 'मिथ्या' और 'तथ्य' के मेरे वर्गीकरण से अभिभूत थी । उसे आश्चर्य होता था जब मैं आइंस्टीन के सिद्धान्त का मखौल उड़ाता था । पहले वह मुझे अहंकारी, सतही बुद्धिजीवी या स्वप्नजीवी मानती थी, साहित्यकार या शायद फ़िलॉसफर, लेकिन धीरे धीरे मेरे बारे में उसकी राय बदली । उसे यह तो महसूस हुआ कि मैं औरों से अलग कुछ हूँ । कभी कभी मैं उसके स्वप्नों की 'व्याख्या' कर दिया करता था लेकिन उसे ध्यान रहता था कि मैं इन सब बातों को, ज्योतिष और तंत्र-मन्त्र आदि पर भरोसा नहीं करता । उसे एक ख्याल था और वह अक्सर मुझसे इस बात की पुष्टि करना चाहती थी कि क्या मैं 'एनलाइटेंड' हूँ ? घूम-फिर-कर उसकी सुई इसी बिंदु पर लौट आती थी और मुझसे दोस्ती के पीछे उसका एकमात्र प्रयोजन यह जानना था कि क्या मैं उसे 'एनलाइटेंड' होने में कोई मदद कर सकता हूँ ? यह उसका 'स्पिरिचुअल' गोल था, और उसे विश्वास था कि एक बार 'एनलाइटेंड' हो जाने के बाद मनुष्य जो चाहे कर सकता है । फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कैसे जीता है, या कैसे मरता है ।
"तुम्हें पता है 'एनलाइटेंड' से तुम्हारा क्या मतलब है?"
"जैसे बहुत से मिस्टिक हुए हैं ।"
उसने मुझसे बहुत से महान व्यक्तियों के नाम गिना दिए ।
मेरे पास उसके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था ।
फिर भी एक दिन साहस कर मैंने उससे पूछ ही लिया :
"तुम 'एनलाइटेंड' क्यों होना चाहती हो ?"
"जिससे मैं बेख़ौफ़ होकर जिंदगी को एन्जॉय कर सकूँ "
"तो अभी क्या परेशानी है इसमें?"
"अभी पाप-पुण्य का डर लगता है, गिल्ट भी महसूस होता है, समाज के दबाव भी हैं ।"
" तो तुम्हारे धर्म में इस के लिए कोई व्यवस्था होगी न ।"
"वेल, मेरे मदर-फ़ादर तिब्बती बौद्ध हैं लेकिन वे बहुत पहले उनके पैरेंट्स के साथ यहाँ सेटल हो गए थे । और मैं अपने ट्रेडीशनल धर्म से बिलकुल दूर हो गई हूँ ।"
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"फिर क्या है असली नाम तुम्हारा?"
मैंने उसे चिकोटी काटी ।
"वेल, क्या किसी का कोई असली या नकली नाम वाकई वह खुद होता है?"
"हाँ, तुम कह तो सही ही रही हो!"
फिर हम दूसरी बातें करने लगे होंगे ।
उसे ड्रीम्स में दिलचस्पी थी । उसे रहस्यवाद में दिलचस्पी थी उसे रहस्यवादियों में दिलचस्पी थी । लेकिन इस सब से गुज़रती हुई वह 'सत्य', 'असत्य', 'मिथ्या' और 'तथ्य' के मेरे वर्गीकरण से अभिभूत थी । उसे आश्चर्य होता था जब मैं आइंस्टीन के सिद्धान्त का मखौल उड़ाता था । पहले वह मुझे अहंकारी, सतही बुद्धिजीवी या स्वप्नजीवी मानती थी, साहित्यकार या शायद फ़िलॉसफर, लेकिन धीरे धीरे मेरे बारे में उसकी राय बदली । उसे यह तो महसूस हुआ कि मैं औरों से अलग कुछ हूँ । कभी कभी मैं उसके स्वप्नों की 'व्याख्या' कर दिया करता था लेकिन उसे ध्यान रहता था कि मैं इन सब बातों को, ज्योतिष और तंत्र-मन्त्र आदि पर भरोसा नहीं करता । उसे एक ख्याल था और वह अक्सर मुझसे इस बात की पुष्टि करना चाहती थी कि क्या मैं 'एनलाइटेंड' हूँ ? घूम-फिर-कर उसकी सुई इसी बिंदु पर लौट आती थी और मुझसे दोस्ती के पीछे उसका एकमात्र प्रयोजन यह जानना था कि क्या मैं उसे 'एनलाइटेंड' होने में कोई मदद कर सकता हूँ ? यह उसका 'स्पिरिचुअल' गोल था, और उसे विश्वास था कि एक बार 'एनलाइटेंड' हो जाने के बाद मनुष्य जो चाहे कर सकता है । फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कैसे जीता है, या कैसे मरता है ।
"तुम्हें पता है 'एनलाइटेंड' से तुम्हारा क्या मतलब है?"
"जैसे बहुत से मिस्टिक हुए हैं ।"
उसने मुझसे बहुत से महान व्यक्तियों के नाम गिना दिए ।
मेरे पास उसके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था ।
फिर भी एक दिन साहस कर मैंने उससे पूछ ही लिया :
"तुम 'एनलाइटेंड' क्यों होना चाहती हो ?"
"जिससे मैं बेख़ौफ़ होकर जिंदगी को एन्जॉय कर सकूँ "
"तो अभी क्या परेशानी है इसमें?"
"अभी पाप-पुण्य का डर लगता है, गिल्ट भी महसूस होता है, समाज के दबाव भी हैं ।"
" तो तुम्हारे धर्म में इस के लिए कोई व्यवस्था होगी न ।"
"वेल, मेरे मदर-फ़ादर तिब्बती बौद्ध हैं लेकिन वे बहुत पहले उनके पैरेंट्स के साथ यहाँ सेटल हो गए थे । और मैं अपने ट्रेडीशनल धर्म से बिलकुल दूर हो गई हूँ ।"
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