April 01, 2014

असली नाम /आजकल / 09/03/2014

उपन्यास-अंश
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"फिर क्या है असली नाम तुम्हारा?"
मैंने उसे चिकोटी काटी ।
"वेल, क्या किसी का कोई असली या नकली नाम वाकई वह खुद होता है?"
"हाँ, तुम कह तो सही ही रही हो!"
फिर हम दूसरी बातें  करने लगे होंगे ।
उसे ड्रीम्स में दिलचस्पी थी । उसे रहस्यवाद में दिलचस्पी थी उसे रहस्यवादियों में दिलचस्पी थी । लेकिन इस  सब से गुज़रती हुई वह 'सत्य', 'असत्य', 'मिथ्या' और 'तथ्य'  के मेरे वर्गीकरण से अभिभूत थी । उसे आश्चर्य होता था जब मैं आइंस्टीन के सिद्धान्त का मखौल उड़ाता था । पहले वह मुझे अहंकारी, सतही बुद्धिजीवी या स्वप्नजीवी मानती थी, साहित्यकार या शायद फ़िलॉसफर, लेकिन धीरे धीरे मेरे बारे में उसकी राय बदली । उसे यह तो महसूस हुआ कि मैं औरों से अलग कुछ हूँ । कभी कभी मैं उसके स्वप्नों की 'व्याख्या' कर दिया करता था लेकिन उसे ध्यान रहता था कि मैं इन सब बातों को, ज्योतिष और तंत्र-मन्त्र आदि पर भरोसा नहीं करता । उसे एक ख्याल था और वह अक्सर मुझसे इस बात की पुष्टि करना चाहती थी कि क्या मैं 'एनलाइटेंड' हूँ ? घूम-फिर-कर उसकी सुई इसी बिंदु पर लौट आती थी और मुझसे दोस्ती के पीछे उसका एकमात्र प्रयोजन यह जानना था कि क्या मैं उसे 'एनलाइटेंड' होने में कोई मदद कर सकता हूँ ? यह उसका 'स्पिरिचुअल' गोल था, और उसे विश्वास था कि एक बार 'एनलाइटेंड' हो जाने के बाद मनुष्य जो चाहे कर सकता है । फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कैसे जीता है, या कैसे मरता है ।
"तुम्हें पता है  'एनलाइटेंड' से तुम्हारा क्या मतलब है?"
"जैसे बहुत से मिस्टिक हुए हैं ।"
उसने मुझसे बहुत से महान व्यक्तियों के नाम गिना दिए ।
मेरे पास उसके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था ।
फिर भी एक दिन साहस कर मैंने उससे पूछ ही लिया :
"तुम 'एनलाइटेंड' क्यों होना चाहती हो ?"
"जिससे मैं बेख़ौफ़ होकर जिंदगी को एन्जॉय कर सकूँ "
"तो अभी क्या परेशानी है इसमें?"
"अभी पाप-पुण्य का डर लगता है, गिल्ट भी महसूस होता है, समाज के दबाव भी हैं ।"
" तो तुम्हारे धर्म में इस के लिए कोई व्यवस्था होगी न ।"
"वेल, मेरे मदर-फ़ादर तिब्बती बौद्ध हैं लेकिन वे बहुत पहले उनके पैरेंट्स के साथ यहाँ सेटल हो गए थे । और मैं अपने ट्रेडीशनल धर्म से बिलकुल दूर हो गई हूँ ।"
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