अनुशासन, आत्मविश्वास और नेतृत्व
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© vinayvaidya111@gmail.com
जीवन में सफलता और सार्थकता अनुभव करने के लिए प्रथम दो कितने महत्वपूर्ण हैं यदि यह स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए, तो अपने भीतर उन्हें विकसित करने की राह आसान हो जाती है ।
तब आप तृतीय अर्थात् ’नेतृत्व’ के बारे में भी समझने की क्षमता हासिल कर सकते हैं ।
लेकिन पहले अनुशासन और आत्म-विश्वास के बारे में ।
यह सच है कि अनुशासन और आत्म-विश्वास किसी प्रक्रिया के परिणाम हैं, न कि सीधे-सीधे पाई जानेवाली वस्तुएँ ।
और उस प्रक्रिया के होने में समय की अपनी अपरिहार्य भूमिका होती है ।
जैसे बीज बोने से लेकर फल आने तक किसी वृक्ष की यत्नपूर्वक देखभाल की जाती है, वैसे ही अपने भीतर ये दो विशेषताएँ उपजाने और विकसित करने, उन्हें पुष्ट और परिपक्व होने देने के लिए समय की भी दरकार होती है ।
कौन से हैं वे कारक, या तत्व जिनकी सहायता से यह संभव होता है?
किसी वृक्ष को सिर्फ़ पत्तियों, फलों, फूलों, जड़ों, बीजों, या शाखाओं में से किसी एक या दो चीज़ों के लिए ही नहीं उगाया जा सकता । या तो आप सभी को सम्मिलित रूप से उगा पाते हैं या फिर किसी को भी नहीं उगा सकते । अनुशासन और आत्म-विश्वास रूपी ’परिणामों’ की प्राप्ति के लिए जिस प्रक्रिया का पालन किया जाना नितान्त आवश्यक है, ’चरित्र, ज्ञान, कर्तव्य-बोध, तथा प्रत्युत्पन्न-मति’ उस प्रक्रिया के विभिन्न अंग हैं । और उनका सम्मिलित परिणाम ही है अनुशासन और आत्म-विश्वास ।
इसलिए अनुशासन और आत्मविश्वास सीखने होते हैं और तभी सीखे जा सकते हैं जब आप अनुशासन-प्रिय हों, और आत्म-विश्वास की शक्ति से अवगत हों ।
कुछभी सीखने के लिए श्रम करना होता है । ’श्रम’ में चार चीज़ें होती हैं । अभ्यास, रुचि / उत्साह और लगन, शक्ति और सामर्थ्य, तथा लक्ष्य । यदि ये चारों हमारे भीतर हैं तो सीखना स्वाभाविक हो जाता है । इसके अतिरिक्त एक अन्य उतना ही महत्वपूर्ण फ़ैक्टर है उपयोगिता । अगर आपको स्पष्ट है कि आप जो सीखने जा रहे हैं उसका आपको कितना उपयोग है, तो उसी अनुपात में आपकी दिलचस्पी सीखने में कम या अधिक हो जाएगी ।
पुनः ’सीखने’ की इस प्रक्रिया में यह भी जानना जरूरी है कि हमारी खामियाँ (वीक-पॉइन्ट्स) क्या हैं, और हमारे प्लस-पॉइन्ट्स क्या हैं । हमारे लिए अवसर कितने हैं और हमारे लिए जोखिम / रिस्क्स क्या क्या हैं ।
अब यदि हम चरित्र की बात करें, तो निश्चित ही चरित्र का श्रेष्ठ होना एक प्लस-पॉइन्ट है, और कमज़ोर होना एक माइनस-पॉइन्ट ।
हम सोचते हैं कि अगर गलत तरीके से भी सफलता हासिल होती है तो क्या हर्ज़ है! लेकिन हममें थोड़ी भी बुद्धि होगी तो हम समझ सकते हैं कि सफलता का खुशी और सार्थकता से कोई संबंध नहीं है । लेकिन सफलता की तात्कालिक चकाचौंध में हम इतना भी नहीं देख पाते ।
’सफलता’ की क़ीमत होती है, और जब हम अनीति या भ्रष्ट तरीके से सफलता पाते हैं तो यह क़ीमत हमें ऐसे रूपों में चुकानी होती है कि हम अन्ततः नष्ट हो जाते हैं । क्यों? क्योंकि हम मानसिक शान्ति जैसी अमूल्य लेकिन न दिखाई पड़नेवाली वस्तु को खो बैठते हैं । फिर हम उत्तेजनाओं और कृत्रिम खुशियों में उस शान्ति का विकल्प ढूँढते हैं, और देर-अबेर हमारी समस्याएँ भयावह रूप से जटिल और दुर्निवार हो जाती हैं ।
अब नेतृत्व के बारे में ।
अनुशासन और आत्मविश्वास के अभाव में नेतृत्व करने की कल्पना तक नहीं की जा सकती ।
नेतृत्व में विचारणिय प्रमुख बिन्दु हैं
इनिशिएटिव, अर्थात् उत्साहपूर्वक आगे बढ़कर किसी कार्य को प्रारंभ करना, इसके लिए चाहिए अन्तःप्रेरणा ।
अन्तःप्रेरणा लक्ष्य और के महत्व तथा गरिमा को समझने पर अनायास ही दिल में जाग जाती है ।
नेतृत्व हमेशा किसी समूह का किया जाता है । जब आपमें इनिशिएटिव होगा तो आप दूसरों को प्रोत्साहित (मोटीवेट) भी कर सकेंगे, क्योंकि मनुष्य अनुकरण से सीखता है । फिर आपको चुनौतियाँ स्वीकार करने में मज़ा आता हो तो आप आसानी से आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन अगर आपमें आत्म-विश्वास की कमी है तो आप चुनौतियों से घबरा कर पीछे हट जाएँगे । इसलिए यदि आप यह समझ लें कि चुनौतियों से शक्ति प्राप्त होती है तो आप जोश से भर उठेंगे ।
नेतृत्व की एक ख़ासियत यह है कि आप अपने को टीम का एक सदस्य समझें न कि नेता । टीम के दूसरे सदस्य तब अनायास आपको नेता की तरह स्वीकार कर लेंगे । लेकिन अगर आप चाहेंगे कि वे आपको नेता समझें तो वे सारी जिम्मेवारी आपपर डालकर खुद बचना चाहेंगे ।
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जीवन में सफलता और सार्थकता अनुभव करने के लिए प्रथम दो कितने महत्वपूर्ण हैं यदि यह स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए, तो अपने भीतर उन्हें विकसित करने की राह आसान हो जाती है ।
तब आप तृतीय अर्थात् ’नेतृत्व’ के बारे में भी समझने की क्षमता हासिल कर सकते हैं ।
लेकिन पहले अनुशासन और आत्म-विश्वास के बारे में ।
यह सच है कि अनुशासन और आत्म-विश्वास किसी प्रक्रिया के परिणाम हैं, न कि सीधे-सीधे पाई जानेवाली वस्तुएँ ।
और उस प्रक्रिया के होने में समय की अपनी अपरिहार्य भूमिका होती है ।
जैसे बीज बोने से लेकर फल आने तक किसी वृक्ष की यत्नपूर्वक देखभाल की जाती है, वैसे ही अपने भीतर ये दो विशेषताएँ उपजाने और विकसित करने, उन्हें पुष्ट और परिपक्व होने देने के लिए समय की भी दरकार होती है ।
कौन से हैं वे कारक, या तत्व जिनकी सहायता से यह संभव होता है?
किसी वृक्ष को सिर्फ़ पत्तियों, फलों, फूलों, जड़ों, बीजों, या शाखाओं में से किसी एक या दो चीज़ों के लिए ही नहीं उगाया जा सकता । या तो आप सभी को सम्मिलित रूप से उगा पाते हैं या फिर किसी को भी नहीं उगा सकते । अनुशासन और आत्म-विश्वास रूपी ’परिणामों’ की प्राप्ति के लिए जिस प्रक्रिया का पालन किया जाना नितान्त आवश्यक है, ’चरित्र, ज्ञान, कर्तव्य-बोध, तथा प्रत्युत्पन्न-मति’ उस प्रक्रिया के विभिन्न अंग हैं । और उनका सम्मिलित परिणाम ही है अनुशासन और आत्म-विश्वास ।
इसलिए अनुशासन और आत्मविश्वास सीखने होते हैं और तभी सीखे जा सकते हैं जब आप अनुशासन-प्रिय हों, और आत्म-विश्वास की शक्ति से अवगत हों ।
कुछभी सीखने के लिए श्रम करना होता है । ’श्रम’ में चार चीज़ें होती हैं । अभ्यास, रुचि / उत्साह और लगन, शक्ति और सामर्थ्य, तथा लक्ष्य । यदि ये चारों हमारे भीतर हैं तो सीखना स्वाभाविक हो जाता है । इसके अतिरिक्त एक अन्य उतना ही महत्वपूर्ण फ़ैक्टर है उपयोगिता । अगर आपको स्पष्ट है कि आप जो सीखने जा रहे हैं उसका आपको कितना उपयोग है, तो उसी अनुपात में आपकी दिलचस्पी सीखने में कम या अधिक हो जाएगी ।
पुनः ’सीखने’ की इस प्रक्रिया में यह भी जानना जरूरी है कि हमारी खामियाँ (वीक-पॉइन्ट्स) क्या हैं, और हमारे प्लस-पॉइन्ट्स क्या हैं । हमारे लिए अवसर कितने हैं और हमारे लिए जोखिम / रिस्क्स क्या क्या हैं ।
अब यदि हम चरित्र की बात करें, तो निश्चित ही चरित्र का श्रेष्ठ होना एक प्लस-पॉइन्ट है, और कमज़ोर होना एक माइनस-पॉइन्ट ।
हम सोचते हैं कि अगर गलत तरीके से भी सफलता हासिल होती है तो क्या हर्ज़ है! लेकिन हममें थोड़ी भी बुद्धि होगी तो हम समझ सकते हैं कि सफलता का खुशी और सार्थकता से कोई संबंध नहीं है । लेकिन सफलता की तात्कालिक चकाचौंध में हम इतना भी नहीं देख पाते ।
’सफलता’ की क़ीमत होती है, और जब हम अनीति या भ्रष्ट तरीके से सफलता पाते हैं तो यह क़ीमत हमें ऐसे रूपों में चुकानी होती है कि हम अन्ततः नष्ट हो जाते हैं । क्यों? क्योंकि हम मानसिक शान्ति जैसी अमूल्य लेकिन न दिखाई पड़नेवाली वस्तु को खो बैठते हैं । फिर हम उत्तेजनाओं और कृत्रिम खुशियों में उस शान्ति का विकल्प ढूँढते हैं, और देर-अबेर हमारी समस्याएँ भयावह रूप से जटिल और दुर्निवार हो जाती हैं ।
अब नेतृत्व के बारे में ।
अनुशासन और आत्मविश्वास के अभाव में नेतृत्व करने की कल्पना तक नहीं की जा सकती ।
नेतृत्व में विचारणिय प्रमुख बिन्दु हैं
इनिशिएटिव, अर्थात् उत्साहपूर्वक आगे बढ़कर किसी कार्य को प्रारंभ करना, इसके लिए चाहिए अन्तःप्रेरणा ।
अन्तःप्रेरणा लक्ष्य और के महत्व तथा गरिमा को समझने पर अनायास ही दिल में जाग जाती है ।
नेतृत्व हमेशा किसी समूह का किया जाता है । जब आपमें इनिशिएटिव होगा तो आप दूसरों को प्रोत्साहित (मोटीवेट) भी कर सकेंगे, क्योंकि मनुष्य अनुकरण से सीखता है । फिर आपको चुनौतियाँ स्वीकार करने में मज़ा आता हो तो आप आसानी से आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन अगर आपमें आत्म-विश्वास की कमी है तो आप चुनौतियों से घबरा कर पीछे हट जाएँगे । इसलिए यदि आप यह समझ लें कि चुनौतियों से शक्ति प्राप्त होती है तो आप जोश से भर उठेंगे ।
नेतृत्व की एक ख़ासियत यह है कि आप अपने को टीम का एक सदस्य समझें न कि नेता । टीम के दूसरे सदस्य तब अनायास आपको नेता की तरह स्वीकार कर लेंगे । लेकिन अगर आप चाहेंगे कि वे आपको नेता समझें तो वे सारी जिम्मेवारी आपपर डालकर खुद बचना चाहेंगे ।
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