कौतूहल
--
आज अपने ब्लॉग्स के 'स्टेट्स' पर एक नज़र दौड़ाई तो यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अचानक ब्लॉग को 'देखनेवालों' की संख्या 38 हो गई । वैसे मैंने कभी इस और ध्यान नहीं दिया कि कितने लोग मेरे ब्लॉग्स को देखते, पढ़ते हैं, और उस पर अपनी प्रतिक्रिया, राय, टिप्पणी आदि देते हैं । सामान्यतः ब्लॉग लिखनेवाले उम्मीद करते हैं कि उनके ब्लॉग को अधिक से अधिक लोग देखें, क्योंकि उनका ब्लॉग-लेखन के पीछे कोई दूसरा लक्ष्य भी होता है । कुछ लोग 'साहित्यकार' 'बुद्धिजीवी', या किसी आदर्श, उद्देश्य या सामाजिक सरोकार से प्रेरित होकर लिखते या अपनी सामग्री 'शेयर' करते हैं, तो कुछ लोग अधिक से अधिक लोगों से 'जुड़ने' के लिए ब्लॉग प्रस्तुत करते हैं। ब्लॉग लिखने का मेरा लक्ष्य सिर्फ इतना था, कि मैं अपनी रचनाओं को एक स्थान पर एकत्र रख सकूँ। न तो मेरे जीवन में और कोई ऐसा लक्ष्य या आदर्श है, न कोई विशिष्ट 'दर्शन' या 'विचारधारा' है जिसके 'प्रचार' की कभी कोई जरूरत मुझे महसूस हुई हो। एकमात्र रुचि सिर्फ लिखने और लिखने भर तक ही होती है । हाँ यह भी लगता है कि शायद मेरी इस 'रचनात्मक' गतिविधि से किसी का मनोरंजन भी होता होगा। और इसलिए मुझे शिकायत नहीं, यदि किसी को मेरा लेखन उबाऊ या अप्रासंगिक, निरर्थक या अरुचिप्रद लगता हो। लेकिन जब अचानक किसी दिन ब्लॉग के देखनेवालों की संख्या दहाई के आँकड़े में पहुँच जाती है तो एक डर भी लगने लगता है ! डर ? जी हाँ, इस बात का डर कि मैं कहीं 'बहस' में तो नहीं फंसनेवाला हूँ !!
क्योंकि बहस मेरी दृष्टि में एक निहायत 'राजनीतिक' क़िस्म की चीज़ होती है, राजनीति की यह ख़ासियत है कि आपके सामने न तो कोई विशिष्ट मुद्दा होता है, न लक्ष्य । क्योंकि जहाँ वाकई कोई मुद्दा या लक्ष्य होता है, वहाँ राजनीति का क्या काम हो सकता है? तब आप मिल बैठकर एक दूसरे को समझकर संवेदनशीलता और सौजन्यता से समस्या के संबंध में कुछ कर सकते हैं । लेकिन दुर्भाग्य से आज एक आम धारणा यह बन गई है कि बिना राजनीति के कोई काम या मुद्दे की बात नहीं हो सकती।
आज हमारे सामने 'आदर्श' और 'लक्ष्य' जरूर होते हैं, और वैसा होना स्वाभाविक ही है, लेकिन 'लक्ष्य' की प्राप्ति के बारे में हम इतने उत्सुक, अधीर और आशंकित होते हैं कि वह जिस छोटे से छोटे रास्ते से मिल सके उसे लपकने में देर नहीं करते ! क्योंकि कोई और भी है, जो उस रास्ते को लपकने के लिए हमसे भी पहले से तैयार बैठा है। फिर वह कोई नई सुविधा हो, जरूरत हो, या महज 'स्टेटस -सिंबल' ही हो।
ब्लॉग लिखने में मुझे कोई प्रतिस्पर्धा नज़र नहीं आती । मुझे तो ब्लॉग लिखना एक व्यक्तिगत उपासना जैसा लगता है। जैसे एक ही भगवान के विभिन्न भक्तों में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती और हर भक्त अपनी श्रद्धा भावना के अनुसार उसकी पूजा अपने ढंग से करता है, वैसा ही ब्लॉग-लेखन में भी होता है। कम से कम मेरा तो यही सोचना है। हाँ, जो लोग ब्लॉग किसी विशिष्ट लक्ष्य के लिए लिखते हैं, जैसे कि व्यावसायिक दृष्टिकोण से लिखनेवाले, वे जरूर अपने ब्लॉग-विज़िटर्स की संख्या के प्रति सतर्क रहते होंगे। सौभाग्य से, मेरे लिए ऐसी कोई समस्या नहीं है !!
--
--
आज अपने ब्लॉग्स के 'स्टेट्स' पर एक नज़र दौड़ाई तो यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अचानक ब्लॉग को 'देखनेवालों' की संख्या 38 हो गई । वैसे मैंने कभी इस और ध्यान नहीं दिया कि कितने लोग मेरे ब्लॉग्स को देखते, पढ़ते हैं, और उस पर अपनी प्रतिक्रिया, राय, टिप्पणी आदि देते हैं । सामान्यतः ब्लॉग लिखनेवाले उम्मीद करते हैं कि उनके ब्लॉग को अधिक से अधिक लोग देखें, क्योंकि उनका ब्लॉग-लेखन के पीछे कोई दूसरा लक्ष्य भी होता है । कुछ लोग 'साहित्यकार' 'बुद्धिजीवी', या किसी आदर्श, उद्देश्य या सामाजिक सरोकार से प्रेरित होकर लिखते या अपनी सामग्री 'शेयर' करते हैं, तो कुछ लोग अधिक से अधिक लोगों से 'जुड़ने' के लिए ब्लॉग प्रस्तुत करते हैं। ब्लॉग लिखने का मेरा लक्ष्य सिर्फ इतना था, कि मैं अपनी रचनाओं को एक स्थान पर एकत्र रख सकूँ। न तो मेरे जीवन में और कोई ऐसा लक्ष्य या आदर्श है, न कोई विशिष्ट 'दर्शन' या 'विचारधारा' है जिसके 'प्रचार' की कभी कोई जरूरत मुझे महसूस हुई हो। एकमात्र रुचि सिर्फ लिखने और लिखने भर तक ही होती है । हाँ यह भी लगता है कि शायद मेरी इस 'रचनात्मक' गतिविधि से किसी का मनोरंजन भी होता होगा। और इसलिए मुझे शिकायत नहीं, यदि किसी को मेरा लेखन उबाऊ या अप्रासंगिक, निरर्थक या अरुचिप्रद लगता हो। लेकिन जब अचानक किसी दिन ब्लॉग के देखनेवालों की संख्या दहाई के आँकड़े में पहुँच जाती है तो एक डर भी लगने लगता है ! डर ? जी हाँ, इस बात का डर कि मैं कहीं 'बहस' में तो नहीं फंसनेवाला हूँ !!
क्योंकि बहस मेरी दृष्टि में एक निहायत 'राजनीतिक' क़िस्म की चीज़ होती है, राजनीति की यह ख़ासियत है कि आपके सामने न तो कोई विशिष्ट मुद्दा होता है, न लक्ष्य । क्योंकि जहाँ वाकई कोई मुद्दा या लक्ष्य होता है, वहाँ राजनीति का क्या काम हो सकता है? तब आप मिल बैठकर एक दूसरे को समझकर संवेदनशीलता और सौजन्यता से समस्या के संबंध में कुछ कर सकते हैं । लेकिन दुर्भाग्य से आज एक आम धारणा यह बन गई है कि बिना राजनीति के कोई काम या मुद्दे की बात नहीं हो सकती।
आज हमारे सामने 'आदर्श' और 'लक्ष्य' जरूर होते हैं, और वैसा होना स्वाभाविक ही है, लेकिन 'लक्ष्य' की प्राप्ति के बारे में हम इतने उत्सुक, अधीर और आशंकित होते हैं कि वह जिस छोटे से छोटे रास्ते से मिल सके उसे लपकने में देर नहीं करते ! क्योंकि कोई और भी है, जो उस रास्ते को लपकने के लिए हमसे भी पहले से तैयार बैठा है। फिर वह कोई नई सुविधा हो, जरूरत हो, या महज 'स्टेटस -सिंबल' ही हो।
ब्लॉग लिखने में मुझे कोई प्रतिस्पर्धा नज़र नहीं आती । मुझे तो ब्लॉग लिखना एक व्यक्तिगत उपासना जैसा लगता है। जैसे एक ही भगवान के विभिन्न भक्तों में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती और हर भक्त अपनी श्रद्धा भावना के अनुसार उसकी पूजा अपने ढंग से करता है, वैसा ही ब्लॉग-लेखन में भी होता है। कम से कम मेरा तो यही सोचना है। हाँ, जो लोग ब्लॉग किसी विशिष्ट लक्ष्य के लिए लिखते हैं, जैसे कि व्यावसायिक दृष्टिकोण से लिखनेवाले, वे जरूर अपने ब्लॉग-विज़िटर्स की संख्या के प्रति सतर्क रहते होंगे। सौभाग्य से, मेरे लिए ऐसी कोई समस्या नहीं है !!
--
No comments:
Post a Comment