December 11, 2013

॥ चाक्षुषोपनिषद् ॥

॥ चाक्षुषोपनिषद् ॥
--
इस चाक्षुषी विद्या के श्रद्धापूर्वक पाठ करने से नेत्रों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं । आँखों की ज्योति स्थिर बनी रहती है । जो व्यक्ति इस का नित्यपाठ करता है, उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता । पाठ के उपरान्त सूर्य देवता को गंध से युक्त जल से अर्घ्य दिया जाना चाहिए ।
--

विनियोग
- दाहिने हाथ में जल लेकर सबसे पहले विनियोग करें -

ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्यायाः अहिर्बुध्न्यऋषिः गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षूरोगनिवृत्तये विनियोगः ।
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव । 
मां पाहि पाहि । 
त्वरितं चक्षू रोगान् शमय शमय । 
मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय । 
यथा अहं अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । 
कल्याणं कुरु कुरु । 
यानि मम पूर्व-जन्म-उपार्जितानि चक्षुःप्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय ॥
--
॥ पाठ ॥
--
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय । 
ॐ नमः करुणाकराय अमृताय । 
ॐ नमः सूर्याय । 
ॐ नमो भगवते सूर्याय-अक्षि-तेजसे-नमः । 
खेचराय नमः । 
महते नमः । 
रजसे नमः । 
तमसे नमः । 
असतो मा सद्-गमय । 
तमसो मा ज्योतिर्गमय । 
मृत्योर्मा अमृतं गमय । 
ऊष्णो भगवान् शुचिर-प्रतिरूपः ।
य इमां चाक्षुष्मतिविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति । 
न तस्य कुले अन्धो भवति । 
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति । 
ॐ नमो भगवते आदित्याय । 
अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा ॥
-- 

No comments:

Post a Comment