|| तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु - 2.||
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(© Vinay Vaidya,
vinayvaidya111@gmail.com, Ujjain / 06-06-2013.)
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(© Vinay Vaidya,
vinayvaidya111@gmail.com, Ujjain / 06-06-2013.)_______________________________________________
थोड़ी बात की जाए अब भाषा-शास्त्र ( Linguistics) और शब्द-विज्ञान (Semantics) की । हिन्दी शब्दों पर मतभेद हो सकता है, किन्तु तात्पर्य समझने में भेद नहीं होगा । पहला शब्द बना है ’लिङ्ग’ से । ’लिङ्ग’ का मतलब होता है लक्षण, चिन्ह, ’लिङ्ग’ शब्द पुनः ’लिङ्’ से व्युत्पन्न है । ’लिङ्’ में ’ङ्’ इत्संज्ञक (expletive ) है । तात्पर्य यह कि ’लि’ इस शब्द से धातु या संज्ञा आदि बनाने के लिए हमें कोई दूसरा हलन्तयुक्त व्यञ्जन (प्रत्यय) इसमें जोड़ना होगा । फलस्वरूप हमें ’लिक्, लिख्, लिग्, लिघ्, लिङ् ....लिच्, ....लिञ्, ...’लिट्’,..’लित्’, ...’लिन्,...’ ’लिप्’, लिब्’,...’लिम्’ ’लिय्’, ’लिर्’, ’लिश्’, ’लिष्’, ’लिस्’...’लिह्’ प्राप्त होंगे । इनमें से अधिक प्रचलित से व्युत्पन्न ’लिख्’, ’लिङ्’, ’लिट्’, ’लिप्’, और ’लिह्’ से हम परिचित ही हैं । सच्चाई तो यह है कि ’लैटिन’ (Latin) शब्द इसी ’लिट्’ से उद्भूत हुआ है, ’लेटर्’, (letter), ’लिटरेचर’ (Literature) आदि इसी ’कुल’ से उत्पन्न हैं । बहरहाल हम बात कर रहे थे ’लिङ्’ की । यही ’लिङ्’ संज्ञाओं और सर्वनामों तथा क्रियारूपों (लकारों) में ’लिङ्ग’ का रूप लेता है । ’लिह्’ का अर्थ होता है चाटना, (- अंग्रेजी में ’lick’) संज्ञा, सर्वनाम, आदि में यही पुंलिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग के रूप में और क्रियारूपों में ’विधिलिङ्’, ’आशीर्लिङ्’ बन जाता है । भाषा चूँकि अर्थ का लक्षण अर्थात् ’लिङग’ है, इसलिए भाषा के लिए ’लिङ्वा’ शब्द विकल्परूप से अस्तित्व में आया । जैसे ’लिप्’, से ’लिपि’, ’लिब्’ से अंग्रेजी का ’ lib, -library'’, उर्दू / हिन्दी का ’लब’ । यह ’ल’ वर्ण या ’ल्’ स्वयं अन्य व्यञ्जनों के सहारे ’लट्’ ’लिट्’ ’लुट्’ ’लृट्’, ’लोट्’, ’लङ्’, ’लुङ’ और ’लृङ्’ के रूप में ’लकार’ बनता है, ’लकारो कालो’ के अनुसार ’लकार’ काल की लीला है । इसलिए ’लिङ्ग’ का अर्थ है ’भाषा’, जिससे ( Language ) की उत्पत्ति दृष्टव्य है । इसलिए (Linguistics) की उत्पत्ति का मूल संस्कृत में पाया जाना स्वाभाविक ही है । संकेत रूप में; (Hint:) लिंग्विस्टिक्स = लिङ् + इष्ट + इक्ष / ईक्ष । आगे का विस्तार छात्रों के अभ्यास के लिए छोड़ दिया गया है ।
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(© Vinay Vaidya,
vinayvaidya111@gmail.com, Ujjain / 06-06-2013.)
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बहुत सुंदर और यथार्थ लिखा है। धन्यवाद.
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