July 11, 2013

~~~ पिछले दिनों 1-16. ~~~

4 comments:

  1. http://www.maharishidayanand.com/rigvedadibhashyabhumika/ महर्षि दयानंद सरस्वती ने इस ग्रन्थ की रचना अपने वेद भाष्यो को प्रारंभ करने से पूर्व विक्रमी संवत १९३३ (इस्वी संवत १८७६) में की थी | ऐसा काल जब सायण आदि का भाष्य प्रयोग कर के एंग्लो (अंग्रेज) वेदों को गडरियो का गीत, अश्लील साहियत सिद्ध करना चाह रहे थे तब यह वेदों की भूमिका से विधर्मियों की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया | मोक्ष मुलर (पाश्चात्य उच्चारण में मैक्स मुलर) तक के विचार इस पुस्तक को पढ़ कर बदल गए | यह परिवर्तन मोक्ष मुलर महोदय लिखित इण्डिया: वाट कैन इट टीच उस? {(India: What can it teach us?) (१८८३)} में स्पष्ट समझ आता हैं | --

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  2. सुन्दर चिंतन सर ...मुझे भी कुछ प्रेरणा मिली जब इन्सान अकेले में विचलित मन की और जाता है !!!सुंदर वेश्लेषण !! धन्यवाद ..निर्मल पानेरी

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  3. अद्भुत और प्रेरणा दायी.... भाव प्रवण ।
    सादर ।

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  4. अद्भुत प्रेरणादायी ....
    सादर ।

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