~~~~~~~~~ भक्ति ~~~~~~~~~~~
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प्रभुजी ! तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अंग अंग बास समानी ॥
प्रभुजी ! तुम घन, बन हम मोरा ।
जैसे चितवत चंद चकोरा ॥
प्रभुजी ! तुम दीपक हम बाती ।
जाकी ज्योति बरै दिन राती ॥
प्रभुजी ! तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा ॥
प्रभुजी ! तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भक्ति करे रैदासा ॥
ऐसी भक्ति करे रैदासा ॥
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ऐसी भक्ति करे रे दासा ,
ReplyDeleteप्रभु जी तुम चन्दन हम पानी .....सम्पूर्ण भक्ति भाव ..सच्चे हृदय से निकले शब्द जो सबके के हृदय को पावन करती है
धन्यवाद विनय जी शेयर करने के लिए
सुनीताजी,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी पढ़कर भाव-विभोर हो उठा ।
वास्तव में मन में ’भक्ति’ जागृत हुए बिना मन निर्मल
नहीं होता और जब तक मन निर्मल न हो, ’भक्ति’ भी
कठिनाई से उमगती है । अगर कभी उमगती भी है, तो
भावुकता के रूप में कुछ पल टिककर बह जाती है ।
और कोरे ’बौद्धिक’ लोग बस बहस और भ्रमों में गोते
खाते हैं, जिसे वे ’ज्ञान’ समझ बैठते हैं । उन्हें तो ’भक्ति’
स्पर्श तक नहीं करती ! आभार ।
सादर,