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(Ode to a sparrow,
sitting on the window-sill)
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अतिथि !!
जब भी खिड़की पर आते-जाते हुए,
-मैं तुम्हें देखता हूँ,
ठिठक जाता हूँ .
और कभी-कभी तो,
घंटों प्रतीक्षा करता हूँ,
-तुम्हारे आने की .
खिड़की बंद करते हुए,
लगातार यह ख़याल आता रहता है,
कि बस तुम आ ही रहे होगे !
और खिड़की को बंद देखकर,
कहीं लौट न जाओ .
अतिथि, मैं तुम्हारी भाषा तो नहीं समझता,
लेकिन भाव-भंगिमा शायद पढ़ लेता हूँ .
फ़िर कुछ समय के लिए सुनता रहता हूँ,
तुमसे कुछ अबूझ, भेद-भरी बातें .
शायद मेरी बातें भी तुम्हें अबूझ लगती हों !
अतिथि,
तुम फ़िर कब आओगे ?
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इस कविता को पढ़कर मेरे एक आलोचक मित्र ने इसे
सुंदर सरल रचना कहा .
इसे पढ़कर मेरे एक सुहृद कवि मित्र ने कहा,
लगता है इसमें अतिथि ईश्वर को कहा गया है .
और मेरी एक परिचता बोली,
प्रेम में पगी एक कविता है यह .
'अतिथि' शब्द उसने शायद प्रेमी / प्रेमिका
के अर्थ में लिया होगा .
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